कभी ख़ुद की, कभी उसकी, फ़िज़ा देखा करता हूँ।
है अजब, मगर यह दौर, भी, मैं, आज़माया करता हूँ
मेरे ख़्वाबों को नया जामा, पहनाकर, देखा करता हूँ।
थोड़ी दूर तक, चलकर साथ, बराबर देखा करता हूँ
वो नहीं, अफ़वाह, चेहरों पे चिपकी, देखा करता हूँ ।
हर सिम्त की जानिब, वही तस्वीर, मैं, देखा करता हूँ
हवा से पूछ कर, फ़िर उसको उड़ाकर, देखा करता हूँ ।
ऐ आसमाँ तू तो गवाह है, हर पहलू ए वाक़िआत का
क्या तू भी ऐसे देखता उसको, जैसे मैं, देखा करता हूँ ?
सहर=सुबह।शम्मा=मोमबत्ती।मुसल्सल=लगातार।
सिम्त=दिशा।ज़ानिब=की ओर, की तरफ़।
पहलू ए वाक़ियात= घटनाक्रम का पहलू।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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