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Thursday, April 29, 2021

दिखता नहीं है

वही सितारा, वही नज़ारा, पहले जैसा दिखता नहीं है
नज़र का फ़र्क़ है या कुछ और है वैसा दिखता नहीं है।

यह आँखों के आगे जो पर्दा रहता है एक, शबनमी
यह धुंधे गर्द है या कुछ और है, वैसा दिखता नहीं है।

चाँद तो अब भी चमकता है, अपने उसी हिसाब से
मगर कुछ था उसमें जो अब, वैसा दिखता नहीं है।

वो शाम, वो गुफ़्तगू, वो अफ़साने और सरगोशियाँ !
शाम तो अब भी आती है, बाकी वैसा दिखता नहीं है।

ज़िन्दगी तो अब भी गुज़र जाती है, अपनी रफ़्तार से
मगर ज़िन्दादिली का नुक़्ता, अब वैसा दिखता नहीं है।

शबनमी=जालीदार। गुफ़्तगू=बातचीत। अफ़साने=किस्से।
सरगोशियाँ = मुँह को कान के पास लाकर बात करना।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

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