Popular Posts

Total Pageviews

Saturday, May 8, 2021

जिसे मैं ढूँढता हूँ।

न ख़ुदा मिलता, न वो नाख़ुदा जिसे मैं ढूँढता हूँ
सब कुछ मिलता सिवा उसके जिसे मैं ढूँढता हूँ ।

हर रोज़ मिलता है एक खोया खोया सा आसमाँ
नहीं मिलता अब वो आसमान जिसे मैं ढूँढता हूँ ।

चेहरों का दरिया, गुज़रता रहता है मेरे सामने से
नहीं आता है नज़र वह चेहरा, जिसे मैं ढूँढता हूँ ।

हर दरीचे में जाकर, सूँघता हूँ, हवा के झोंकों को
नहीं मिलता महक का झोंका, जिसे मैं ढूँढता हूँ ।

लगता है खड़ा हूँ मैं, ज़ुबानों के एक समन्दर में
वह हम-ज़ुबाँ नहीं है मिलता, जिसे मैं ढूँढता हूँ ।

एक थी निगाह जिसमें इन्तिज़ार हुआ करता था
अब वो दिखती नहीं है, हज़ारहा उसे मैं ढूँढता हूँ ।

नाख़ुदा= नाविक।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

No comments:

Post a Comment