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Thursday, May 20, 2021

जैसे

अभी साँस निकली एक जैसे
इंतिज़ार कर , थकी हो जैसे।

बादल कल से बरसा किया है
कहीं से तूफ़ान आया हो जैसे।

बौछारें कुछ उड़ उड़ कर आईं
हवा ने एहसान कर दिया जैसे।

एक बुलबुल यहाँ दुबक के बैठा
किसी ने हवा बंद करदी है जैसे।

खुली आँख से ख़्वाब क्या देखा
ख़ुशबू उड़ कर आ गई हो जैसे।

तसव्वुर में डूब गया है दिल ऐसे
चाँदनी में डूब गया हो ग़म जैसे।

एक ख़्वाब अभी आया है ऐसे
बादल से चाँद निकला हो जैसे।

अब्र आलूद मौसम चला गया
कोई बिन बुलाया मेहमान जैसे।

अब्र आलूद= घटाओं से भरा

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।




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