लोग मुंह छिपाते हैं, मास्क में; आंखें मुस्कुरा लें?
हम बुलाते हैं पास उनको , वो दूर हटते जाते हैं
कहते हैं दूर रहो ; हमने कहा आओ, मुस्कुरा लें?
वो कहते हैं कोई छुपा रुस्तम आगया है शहर में
चुपके से चिपक जाता है; मौका है , मुस्कुरा लें?
बड़ा चालाक है, शक्ल बदलता रहता है हर दिन।
लगता है कोई मसखरा है , अपुन भी मुस्कुरा लें?
हमने कहा ऐसे डरने लगेंगे, तो और डरायेगा वो।
पूछा दवा क्या है ? हमने कहा क्यों न मुस्कुरा लें?
ज़िन्दादिली तो जी भरकर, मुस्कुराने का नाम है।
बोले कब मुस्कुराऐं ? हम बोले अभी मुस्कुरा लें?
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
No comments:
Post a Comment