आज पूरनमासी है, और, चाँद गोल हो गया।
चाँद तारों को झाँका, लगा रिसाला खुल गया
देखते देखते सारा, आसमान मकतब हो गया।
बोधिधर्म देखा किया दीवार को नौ साल तक
कोरा देखते देखते, सचमुच वो कोरा हो गया।
चुप साधन चुप साध्य है , चुप रह बोली भूरी
जिसने जो चाहा सही, वह वैसा ही हो गया।
लोग घबराते हैं, आँखें न बन्द हो जाऐं कहीं
जब भी बन्द हुई आँखें, तभी उजाला हो गया।
इब्तिदाई मुश्किलें आती हैं सफ़र में सभी को
जैसे अना ग़ायब हुई तो, अंदर आना हो गया।
अब्र= बादल
मकतब= पाठशाला
इब्तिदाई= शुरू में
अना= ego
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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