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Saturday, May 29, 2021

और क्या चाहिए

सुबह से शाम होती है, और क्या चाहिए
शाम से सहर होती है, और क्या चाहिए।

चराग़ जलाते हैं, अँधेरा सम्हालने के लिए
बस सम्हल जाए, फ़िर, और क्या चाहिए।

आवाज़ दे, इसके पेशतर कोई हलचल हो
पास ऐसा हवाख़्वाह तो, और क्या चाहिए।

चेहरे से सब वाक़िफ़ हैं, दिल रहता निहाँ है
बस चेहरे को सजाना है, और क्या चाहिए।

वक्त को सुनानी हैं, कुछ बातें भी कर लेते हैं
वक्त बख़ूबी याद रखता है, और क्या चाहिए।

दिल की बातें हैं, कोई दिल मिलेगा, कर लेंगे
अभी तो हाथ मिला लेते हैं, और क्या चाहिए।

सहर = सुबह। पेशतर = पहिले।

हवाख़्वाह= शुभचिंतक। निहाँ = छुपा हुआ।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

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