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Sunday, August 8, 2021

6 अगस्त 2021, शाम 5 बजे लगभग।

मैं बैल्कनी में बैठा था
मौसम बिल्कुल सूखा था
कुछ कुछ गर्मी सी भी थी
मैं असमंजस में डूबा था।

मैंने पलकें झपकी थीं
या जम्हाई सी ले ली थी
मुझको ठीक से याद नहीं
पर कुछ तो बात हुई सी थी।

वह मेरे ऊपर बरस रहा था
सावन बनके बरस रहा था
मैं भौंचक्का सा देख रहा था
औचक बादल बरस रहा था।

इतना बरसा, इतना बरसा
जितना तरसा, उतना बरसा
गरमी तो काफ़ूर हो गई
मन हरसा और तन हरसा।

छत पर बच्चे नाच रहे थे
संग संग छाते नाच रहे थे
बादल घड़घड़ सी करते थे
या डांस पे वो भी थिरक रहे थे?

अब सब कुछ है ठहर गया
सड़क पे पानी जमा हो गया
पेड़ खड़े हें धुले धुले से
बादल वादा निभा गया।

बादल क्या था बदल गया
पल में मौसम बदल गया
मैं सोच रहा क्या मसला है
क्या और भी कुछ है बदल गया?

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

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