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Wednesday, August 11, 2021

ले चल यहाँ से।

चल रे मनवा चल तू यहाँ से
ले ले बिदाई ले चल यहाँ से
मन नहीं लगता अब है यहाँ पे
मेरा सहारा गुम है यहाँ से।

सूना है आँगन, सूना बिछावन
सूनी दुपहरी, सूनी है चिलमन
सूने कँगूरे, सूने झरोखे
बिरही के जैसे बिलखे है दरपन।
किसके सहारे अब मैं रहूँगा
ले चल मुझको ले चल यहाँ से।

किसको सुनाऊँ मैं अपनी कथा
किसको दिखाऊँ मैं मन की व्यथा
जिसको हुआ है तजरबा ए ग़म
वो ही जाने ग़म की प्रथा।
मुश्किल ही लगता अब तो है जीना
जाना ही होगा मुझको यहाँ से।

कहाँ से लाऊँ अब वो सफ़ीना
कहाँ पे पाऊँगा अब वो नगीना
ऐ रब क्या तूने ये कर दिया
छीना है मुझसे मेरा ख़ज़ीना।
मुझको है तुझ पे बड़ा एतमाद
रहम कर उठा ले मुझे भी यहाँ से
रहम कर उठा ले मुझे भी यहाँ से।

तमामशुद।
क़दमबोस
अजित सम्बोधि।

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