तैरते हैं हवाओं पर, ये सावन का महीना है।
पानी की छमाछम है
लहराता परचम है
देखें जिधर भी, उधर
मस्ती का आलम है।
बजती है हर तरफ़ में
खुशनुमाई की बीना है।
रिमझिम बरसता है बादल कि जैसे पशमीना है।
परिन्दे करते किलोलें
हवाऐं गाती हैं ग़ज़लें
पेड़ों की शाख़ें भी
मनचलों के जैसे झूलें।
मचलते हैं लख़्ते बादल
खोल करके सीना हैं।
बादलों से झरती फुहारें, कि जैसे नगीना हैं।
दूर मैं जो झाँकता हूँ
हरी चादर ही देखता हूँ
आसमाँ से ज़मीं तक बस
ख़ुशनुमाई देखता हूँ।
नज़रों को हर छोर पर
दिखता ख़ज़ीना है।
महकता है सारा गुलशन, समा रसभीना है।
मन की किताब में
दिल के इंतिख़ाब में
चुनने में है मुश्किल
जो कुछ है ख़्वाब में।
दुआओं की बरसात है
गुलाबी आबगीना है।
फ़ीरोज़ी रोशनी में, परदा झीना झीना है।
सफ़ीना= कश्ती। बाक़रीना= in sync.
लख़्ते बादल=बादलों के टुकड़े। ख़ज़ीना=ख़ज़ाना।
इंतिखाब=choice. आबगीना=गुलाब जल की शीशी।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
No comments:
Post a Comment