Popular Posts

Total Pageviews

Saturday, September 25, 2021

कई बार

कुछ किस्सों से मन नहीं भरता, सुनते हैं, कई बार
कुछ दामन पकड़ लेते हैं, सुनने पड़ते है, कई बार।

मुस्कुराना कोई आसान नहीं होता है बारहा, जनाब
मुस्कुराहट में आँसू निकल आया करते हैं, कई बार।

बड़ी उम्मीद से हाथ पकड़ कर निकलते हैं सफ़र में
सफ़र पूरा होने से पहले हाथ छूट जाता है, कई बार।

ज़िंदगी के हर पन्ने पर कुछ तो लिखा होता है, जनाब
हम हैं कि बिना पढ़े ही पन्ना पलट देते हैं , कई बार।

ख़ामोशी तो रूह की पसंदीदा हुआ करती है, साहिब
लोग हैं , अपने होंठों को सीं लिया करते हैं, कई बार।

मैं नहीं पहिचान पाया हूँ अपने को अभी तक, जनाब
लोग मेरी तस्वीर को मेरी पहिचान बताते हैं, कई बार।

मैं बड़ा खुशगवार हूँ कि इतनी महंगाई के दौर में भी
मुझे दुआऐं मिल जाती हैं बिल्कुल मुफ़्त में, कई बार।

कभी कोई बोला था तो मैं भीग गया था , अचानक से
लफ़्ज़ भी बारिश की बूँद बन जाया करते हैं, कई बार।

एक दोस्त ने पूछ लिया , कैसे रह लेते हो तन्हाई में
यादों की बस्ती से ये रहगुज़र नहीं  जाती, कई बार।

ख़्वाबों को तो मोतियों से ही पिरोया करते हैं, जनाब
गलती ये होती है धागा कच्चा रह जाता है, कई बार।

समंदर में डूबने की ज़रूरत किसको महसूस होती है
आँखों का पानी ही बहुत है डुबाने के लिए , कई बार।

सारे ग़म झोली में आ गए एकबारगी, किस सफ़ाई से
मिलके उठाऐंगे हर बोझ, वायदा ये हुआ था, कई बार।

कौन चाहता है अपने शिकस्ता दिल को उजागर करना
हारा हुआ इन्सान भी मुस्कुराता मिल जाएगा, कई बार।

सारी उम्र निकल गई है , बस अदाकारी करते करते
अब ज़िंदगी सादगी से बिता लूँ, सोचता हूँ, कई बार।

कितनी भी ऊँची उड़ान भर लो, हश्र तो एक ही होगा
ज़मीं पर आना होगा, दुहरा लो कोशिश, कई कई बार।

रब की मेहरबानी है ऐसा हमसफ़र दिया, कई कई बार
ज़िंदगी चुलिस्ताँ हो जाती, ग़र सब्र न मिलता, कई बार।

ज़िन्दगी के फ़लसफ़े पर हँस लिया करता हूँ, बार बार
किरदार मैं भी हूँ, ख़ुद पे भी हँस देता हूँ, कई कई बार।

सच चेहरे पर लिखा रहता है साफ़ साफ़ उस छोर तक
झूठ सफ़ाई देता है मुस्कुरा मुस्कुरा कर, कई कई बार।

वो चालाकियाँ करते रहते हैं और इतराते हैं हर बार
क्या नज़रों से गिरना कम सज़ा होती है? कई बार?

बीमार होने पर ज़रूरी नहीं आपकी ख़ता हो, हर बार
लोग पूछ पूछ कर बीमार कर दिया करते हैं, कई बार।

मुलायम बिस्तर पर भी नींद नहीं आती है, कई बार
ख्वाहिशें न हों, पत्थर पे नींद आजाती है, कई बार।

ख़ूब बोले वो ज़िन्दगी भर, शोहरत पाई, दौलत पाई
मगर कुछ ऐसा खो दिया, जाते वक़्त रोये  कई बार।

मैं ख़ामोश था और सामने जलता दिया भी ख़ामोश था
ख़ामोशी को ख़ामोशी से जवाब मिल जाता है, कई बार।

बारहा= अक्सर। रहगुज़र= डगर। चुलिस्ताँ= a desert devoid of oases.

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

No comments:

Post a Comment