रब का इरादा क्या था, मुझे पता न लगा
जब मंज़िल चल के आई, तो पता लगा।
घौंसले को मानता था, यही सब कुछ है
पर निकले तो हैरतकदा का पता लगा।
जिनको याद करते हैं, उनसे बात नहीं करते
बात करना फ़ालतू है, अब जाके पता लगा।
एक गद्दे ढोके थका, एक गद्दे पे सो के थका
ग़ुरबत और कसरत का फ़र्क़, तब पता लगा।
घर, बीबी, नौकरी, सब बदल दिया, कुछ न हुआ
ख़ुद को बदला करिश्मा होगया, देर से पता लगा।
लोग ऐसी बातें करते हैं कि अपना माथा ठोक लें
मगर गाँठके पक्के होते हैं, ठगे जाने पे पता लगा।
जब तक पास में थी, ज़िंदगी का एहसास न हुआ
अब जब साँस लेने में दिक्कत हुई, तब पता लगा।
वफ़ात बज़ाहिरा सच है, कभी ग़लत साबित न हुआ
इसका नाम लेने से लोग कतराते हैं, अब पता लगा।
दिल अकेला होता है , उसको रुलाया नहीं करते
हम ख़ुद पे सितम ढाते रहे, अब जाके पता लगा।
आज काम में मसरूफ़ रहा, सोचा अब बताऊँगा
किसको बताओगे, दीवारों ने पूछा, तब पता लगा।
हैरतकदा= आश्चर्यजनक विश्व। कसरत= अमीरी।
ग़ुरबत= ग़रीबी। वफ़ात= अंत। मसरूफ़= व्यस्त।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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