सब के दिलों में उजाला भर दे।
बड़े नादां हैं ये कुछ नहीं समझते
इनमें अपने फ़ज़ल का रंग भर दे।
कोई ग़ैर ज़बान का या ग़ैर ज़ात का
इन्हें भाता नहीं, इनमें समझ भर दे।
ग़ैर मज़हब के लिए तेग़ा निकालते हैं
ये अंधेरों में भटकते हें, रोशनी भर दे।
आदमी मिलना बहुत दुशवार हो गया
अपने इंसान में ज़रा इंसानियत भर दे।
ज़मीं आसमां दिए, शम्सो क़मर दिए
आबोहवा दी,दिलों में प्यार भी भर दे।
हमने शादमानी मांगी थी यहां पे,मगर
जीना मुहाल हो गया,अब रहम कर दे।
बहुत हो गया, अब तो ये फ़र्क़ मिटा दे
दिलोजां में ज़रा कोई शबाहत भर दे।
वैसे तेरी आदत से अच्छे से वाक़िफ़ हूं
ऐसा कर दे मुझे तू बेनियाज़ी भर दे दे।
ज़र्रे ज़र्रे में बिखरी तेरी महक, गुंबदों के
नीचे समेट रहे जो, उन्हें अक़्ल भर दे दे।
फ़ज़ल= कृपा। दुशवार= मुश्किल।
शम्सो क़मर= सूरज चांद। शादमानी= ख़ुशी।
मुहाल= नामुमकिन। शबाहत= समरसता।
बेनियाज़ी= उदासीनता। तेग़ा= शस्त्र।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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