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Friday, October 15, 2021

ख़ामोशी

ऐसा मत न समझने  लगना
ग़लतफ़हमी में मत न रहना
कि आवाजों की आवाज़ में
शोर ओ ग़ुल के शोरोग़ुल में
ख़ामोशी  ख़ामोश  होती  है
उसकी कुव्वत ज़ार होती है।

मेरी बातको ग़ौर से सुनना
दिलो ओ दिमाग़ से सुनना
जब आवाज़ ख़त्म होती है
ना  होने पर ग़म में होती है
ख़ामोशी बरक़रार रहती है
वह हमेशा मौसूफ़ रहती है।

जब कुछ न था, ख़ामोशी थी
कुछ न होगा , ख़ामोशी होगी
काइनात ए ख़ामोशी दाइम है
अज़ल से आक़बत, क़ायम है
ख़ामोशी की दास्तान जानिए
और ख़ुद को ख़ामोश राखिए।

आप जो यह जिद्दोजहद देखते हैं
हरेक जानिब जंगोजदल देखते हैं
क़त्लेआम, ये ख़ूनख़राबा देखते हैं
बहसमुबाहसा,शोरशराबा देखते हैं
ये बेहोश हें ये ख़ामोशी नहीं जानते
अनाड़ी, ख़ामोश रहना नहीं जानते।

कुव्वत= शक्ति। ज़ार= क्षीण।
मौसूफ़= प्रशंसनीय। दाइम= शाश्वत।
काइनाते ख़ामोशी= सन्नाटे का जगत।
अज़ल से आक़बत= प्रारंभ से प्रलय।
जानिब= दिशा में। जंगोजदल= युद्धोन्माद।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

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