कितना ख़याल रखा है मेरे ऐहतराम का यहाँ पे।
ऐसा तो कभी इत्तिफ़ाक हुआ न था पहिले कभी
जैसे कि लोग करते हैं इसरार ए पज़ीराई यहाँ पे।
उनका कहना है कि मैं अकेला आख़िर हूँ तो क्यों
मेरी बुज़ुर्गियत का कितना ख़याल रखते हैं यहाँ पे।
आप तो पैदाइशी बुज़ुर्ग हैं, कभी किसी ने कहा था
बुज़ुर्गियत मेरी मगर परवान चढ़ी है, आके यहाँ पे।
यादें ग़ालिब की हो गई हैं ताज़ा आकर के यहाँ पे
महफ़िलें सजती थीं मीर मोमिन ज़ौक की यहाँ पे।
एक आँसू उस बदनसीब शायर के लिए छलका है
शहंशाह था मगर कर दिया बेदख़्ल उसको यहाँ पे।
ऐहतराम= आदर।
इसरार ए पज़ीराई= स्वागत के लिए आग्रह।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
No comments:
Post a Comment