कभी कहते थे चाँद उग गया, चलके देखते हैं
एक अरसा हुआ, नहीं बोला, चलके देखते हैं।
मन कहता है, चलो यहाँ से कहीं दूर चलते हैं
शायद वहाँ से वह क़रीब हो, चलके देखते हैं।
दुनिया तो फ़ानी है, वक़्त की अजब रवानी है
शायद वहाँ मन बहल जाये , चल के देखते हैं।
चाँदनी से बिछड़ कर चाँद तन्हा सा लगता है
वहाँ पर कैसा लगता है, चलो चलके देखते हैं।
यहाँ के आसमाँ को देखा है, रात भर जागकर
वहाँ भी आसमाँ ताकता है? चल के देखते हैं।
यहाँ तो बुलबुल जगाती है हर सुबह गा गा कर
वहाँ कौन जगायेगा मुझे, चलो चलके देखते हैं।
यहाँ कोयल की कुहूकुहू में अपनी हूक सुनता हूँ
वहाँ कौन ये राग सुनाएगा, चलो चलके देखते हैं।
तेरे हर इक रंग में से नित नये रंग निकल आते हैं
मेरे रंजोगम के हैं कितने पहलू , चलके देखते हैं।
हर जगह पे यहाँ की हवा में उसकी महक होती है
वहाँ भी तो उसकी महक होती है, चलके देखते हैं।
फ़ानी=नश्वर। रवानी= प्रवाह। ं
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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