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Sunday, November 7, 2021

साफ़गोई

लोगों को जिद्दोजहद करते एक उम्र गुज़र जाती है
मुझे कहाँ फ़ुर्सत, एक करिश्मा देखते रात जाती है।

कितने लोग हैं यहाँ पे जो तेरे चाँद सितारे देखते हैं
हाँ तेरे चाँद सितारे तो ज़रूर सबको देखते रहते हैं।

मैं थक गया हूँ तुझको जगह ब जगह ढूँढता ढूँढता 
कह देते 'नहीं मिलना', तो मैं कोई और काम ढूँढता।

इतना क़रीब होते हुए दूर हो, ख़ैर हमारा नसीब है
मगर ये तो बता, हबीबी होने का ये कैसा ज़रीब है?

तू जो ख़ामोशी पसंद, सब काम चुपके से करता है
मैं भी ख़ामोशी पसंद, तसव्वुर इसमें छूट चाहता है।

            ख़ुशनसीबी,बदनसीबी होती है
            जब जब भी क़ुर्बत दूर होती है
            इन्सान इन्सान नहीं रह पाते हैं
            जब इन्सान में मजबूरी होती है।

जब ज़िन्दा थे तो ज़िन्दगी एक कशमकश बन गई
मरने के बाद मालूम होता है कि जान ही चली गई।

ज़िन्दगी जीने के लिए एक अदद मुहब्बत चाहिए
बाकी के असलाह तो जनाज़े के वक़्त पर चाहिए।

ज़िंदगी छोटी है तो क्या, हम उसे तरजीह देते रहेंगे
ख़याल ख़याल गाह में रहें, हम ख़याल रखते रहेंगे।

गीत गाना हमारी फ़ितरत, बिना साज़ भी गाते रहेंगे
कौन कहता मुरव्वत नहीं, बेनियाज़ी को मनाते रहेंगे।

हबीबी= क़रीबी। ज़रीब= पैमाना।
तसव्वुर= कल्पना। क़ुर्बत= नज़दीकियां।
असलाह= सामान। तरजीह= priority.
मुरव्वत= दूसरों का ख़्याल रखना। बेनियाज़ी=निस्प्रहता।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।          

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