Popular Posts

Total Pageviews

Wednesday, April 27, 2022

चिराग़े मुहब्बत ।

चिराग़े मुहब्बत हूँ सलीके से जला करता हूँ 

ख़ासो आम सभी को, रोशन किया करता हूँ ।


मुहब्बत को मुहब्बत से तोला नहीं करता हूँ 

मुहब्बत को तो  में सिर्फ़  लुटाया  करता हूँ ।


वो मुहब्बत को  दिमाग़  से सोचा  करते  हें 

गोया दिल को दिमाग़ में लिए घूमा करते हें । 


ये समझने में एक अरसा सा लग  जाता है 

वो मुस्कुराते हें या कि आईना मुस्कुराता है ।


फूल जब खिलता है, मुहब्बत बखेर देता है 

हम को हँसाता जाता है और चला जाता है । 


उधर में से पुरवैय्या आती है, छू के जाती है 

सारे बदन को सिहरा देती है, चली जाती है ।


मुहब्बत रब की एक ख़ूबसूरत सी दौलत है 

और मेरी वहशत के लिए वो बड़ी ज़रूरत है । 


मुहब्बत मेरी सआदत है और मेरी  शबाहत है 

उसको निभाना मेरी आदत है, एक रिवायत है । 


मुहब्बत के लिए बस आप एक काम कीजिए 

रुख़ पे मुस्कराहट के लिए जगह बना दीजिए ।


मुस्कुराहट  एक  बड़ी नियामत  हुआ करती है 

नफ़रत को फ़िलफ़ौर, मुहब्बत किया करती है ।


नफ़रत बंजर ज़मीं है, उसे बारिश की ज़रूरत है 

मुहब्बत बारिश है, और  नफ़रत की  बसीरत  है ।


ज़िन्दगी में तूफ़ान अक्सर आते ही रहा करते हें 

मगर मुहब्बत सरबराह हो, तो टिक नहीं पाते हें ।


मुहब्बत है  तो महबूब भी  भला दूर तो  न  होंगे

और ख़ुशबू  के चमन  भी कुछ  कमतर  न होंगे । 


मुहब्बत चिराग़ के मानिन्द चमकने लग जाती है 

जब भी मुस्कान मुहब्बत का किरदार निभाती है ।


रब = ईश्वर । वहशत = पागलपन ।

सआदत = सौभाग्य । शबाहत = हमशक़्ल।

नियामत = वरदान । फ़िलफ़ौर = फ़ौरन ।

बसीरत = prudence. सरबराह = मुखिया ।


ओम् शान्ति:

अजित सम्बोधि ।



No comments:

Post a Comment