चिराग़े मुहब्बत हूँ सलीके से जला करता हूँ
ख़ासो आम सभी को, रोशन किया करता हूँ ।
मुहब्बत को मुहब्बत से तोला नहीं करता हूँ
मुहब्बत को तो में सिर्फ़ लुटाया करता हूँ ।
वो मुहब्बत को दिमाग़ से सोचा करते हें
गोया दिल को दिमाग़ में लिए घूमा करते हें ।
ये समझने में एक अरसा सा लग जाता है
वो मुस्कुराते हें या कि आईना मुस्कुराता है ।
फूल जब खिलता है, मुहब्बत बखेर देता है
हम को हँसाता जाता है और चला जाता है ।
उधर में से पुरवैय्या आती है, छू के जाती है
सारे बदन को सिहरा देती है, चली जाती है ।
मुहब्बत रब की एक ख़ूबसूरत सी दौलत है
और मेरी वहशत के लिए वो बड़ी ज़रूरत है ।
मुहब्बत मेरी सआदत है और मेरी शबाहत है
उसको निभाना मेरी आदत है, एक रिवायत है ।
मुहब्बत के लिए बस आप एक काम कीजिए
रुख़ पे मुस्कराहट के लिए जगह बना दीजिए ।
मुस्कुराहट एक बड़ी नियामत हुआ करती है
नफ़रत को फ़िलफ़ौर, मुहब्बत किया करती है ।
नफ़रत बंजर ज़मीं है, उसे बारिश की ज़रूरत है
मुहब्बत बारिश है, और नफ़रत की बसीरत है ।
ज़िन्दगी में तूफ़ान अक्सर आते ही रहा करते हें
मगर मुहब्बत सरबराह हो, तो टिक नहीं पाते हें ।
मुहब्बत है तो महबूब भी भला दूर तो न होंगे
और ख़ुशबू के चमन भी कुछ कमतर न होंगे ।
मुहब्बत चिराग़ के मानिन्द चमकने लग जाती है
जब भी मुस्कान मुहब्बत का किरदार निभाती है ।
रब = ईश्वर । वहशत = पागलपन ।
सआदत = सौभाग्य । शबाहत = हमशक़्ल।
नियामत = वरदान । फ़िलफ़ौर = फ़ौरन ।
बसीरत = prudence. सरबराह = मुखिया ।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि ।
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