वो शोर से शोर को मिटाया करते हें
दीवारें उठा के, प्यार बढ़ाया करते हें
मेरी समझ में नहीं आ रही है ये बात
वो बन्दूक से बात समझाया करते हें ।
प्यार मर गया तो नफ़रतें रह जाँऐंगी
इन्सान न रहेगा , सरहदें रह जाँऐंगी
बारूद के ढेर पर बैठ के हम लड़ रहे
कुछ न बचेगा वीरानियाँ बच जाँऐंगी।
वो लड़ाई को लड़ के मारना चाहते हें
वो बैरी को बैरी बनके मारना चाहते हें
मालिक ने सब कुछ बख़्शा है मुफ़्त में
वो उसको हटा के अपना नाम चाहते हें ।
हम तरक़्क़ी पसन्द हें, वे बताया करते हें
हम एक धरती, हज़ार देश हुआ करते हें
पहले एक गाँव एक घर, हुआ करता था
अब एक गाँव एक सौ घर हुआ करते हें ।
कभी एक घर में इतने लोग हुआ करते थे
बातों के सिलसिले ख़त्म, न हुआ करते थे
अब बुज़ुर्ग व्रद्धाश्रम में, बच्चे बाहर जाते हें
पा सकेंगे वो दिन, जो पहिले हुआ करते थे ?
अब तो प्यार जैसे चिल्लर में मिला करता है
कुछ अभी कुछ फ़िर, पुर्ज़ों में मिला करता है
बहुत चाहते हें, कभी कोई सिल्ली मिल ज़ाइ
आख़िर उम्मीद पे ही हर ख़्वाब टिका करता है ।
बंजर ज़मीन है, इसको बारिश की ज़रूरत है
सोच में खोट है, इसे सूझ बूझ की ज़रूरत है
इन सूखे सूखे चेहरों पे, मुस्कान आने दीजिए
मुस्कान लाने के लिए, मुहब्बत की ज़रूरत है ।
मुहब्बत माँगी नहीं जाती , बस बाँटी जाती है
किश्तों में नहीं दिया करते, ये उँडेली जाती है
सूरज चाँद तारे, और न जाने क्या क्या है वहाँ
सारे रिश्तों में बस , मुहब्बत ही आती जाती है ।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि ।
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