मैं तुमको मनाता रहूँगा
ज़िन्दगी को रखूँगा सलामत
ज़िन्दगी को मनाता रहूँगा।
मुहब्बत के किस्से सुना के
उसको ही शाहिद बना के
उसकी ही ख़ातिर मैं हरदम
सिराजे दिल को जलाता रहूँगा।
आरिफ़ हो तुम जाना मैं ने
आबिद हो तुम माना मैं ने
छिपा के दुनिया की नज़रों से
मैं दिल को ये बताता रहूँगा।
मुहब्बत का कोई मुक़ाबिल नहीं
मुहब्बत का कोई सानी नहीं
मुहब्बत के दरिया का शनवार मैं
मुहब्बत को हरदम लुटाता रहूँगा।
आईना मैं जब भी उठाया करता
देख के मुझे वो मुस्कुराया करता
मुस्कुराहट का ये अंदाज़ उसका
मैं उसको सदा ही सुनाता रहूँगा।
मुहब्बत तो बस एक फुलवारी है
ज़रदोज़ी है, हमवार है, बुर्दबारी है
कोई मुहब्बत के छींटे भर डाल दे
मैं ता उम्र इबादत करता रहूँगा।
जब करी थी मैने गुज़ारिशे इबादत
उसने दिखाई थी ये राहे मुहब्बत
तोड़ करके सभी तिलस्मे फ़जीहत
मैं बा करीना मुहब्बत करता रहूँगा।
दिल की बातें सभी कहना चाहते हैं
ये अलग है, कहते कहते रुक जाते हैं
ये मेरा वायदा है कोई अगर सुनाएगा
मैं दिल को पाबंद कर, सुनता रहूँगा।
चाँद तो आस्माँ का होके रह गया
दूर से ही चक्कर लगा के रह गया
चाँदनी ही आती है सफ़र तय कर
मैं उसी से सारी उम्र मिलता रहूँगा।
पुराने लमहे जब भी गुफ़्तगू करते हैं
जाने कितने चेहरे उभर आया करते हैं
यादों का एक समन्दर हो जायेगा जब
मैं उसी में डुबकियाँ लगाता रहूँगा।
एतिराफ़ ए मुहब्बत = मुहब्बत की स्वीकार्यता।
शाहिद = प्रेमी। सिराजे दिल = दिल का चिराग़।
आरिफ़= सूफ़ी। आबिद= तपस्वी। मुक़ाबिल = equal & opposite.
शनवार= तैराक। ज़रदोज़ी= सलमे सितारे जड़ी हुई।
हमवार= इकसार। बुर्दबारी= सहनशीलता।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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