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Saturday, May 28, 2022

आबशार

ऐ बादे सबा, तुझको मेरा नमन
तूने महका दिया है , मेरा चमन।

हर आहट पे मेरा बचपन मौज़ूद रहता है 
हर याद में वो ख़याल  महफ़ूज़  रहता है ।

कागज़ का सफ़ीना था, और  सवार  हो   लिए 
रज़ा दिल की; छोड़ा अंजाम,  किस्मत के लिए ।

जहाँ मिली नफ़रत  वहाँ, कुछ प्यार देता गया 
नामों नसब चलाना है, ये ख़याल रखता गया ।

मुझे बरतर मानने की, गलती करना नहीं 
फिर कहोगे इन्सान है, ये तो मसीहा नहीं ।

ये  तो हकदारियाँ  हैं, तनहाईयाँ नहीं 
इनसे जुदा हो के रहना, आसान नहीं ।

बहुत पहले से  तन्हाई मेरी मंसूब है
अब इस रिश्ते को तकमील दे दी है ।

कभी कोई  माँगे तो,  दे  भी  दिया  करो
ज़िन्दगी की इज़्ज़त,  कर भी लिया करो।

ख़ूबसूरत  चेहरों  की  तलाश  नहीं  है  
जो मुस्कान सुकून दे, वही ख़ूबसूरत है ।

कहीं जबल, कहीं वादी, ज़िन्दगी रुकती नहीं 
कोई  लग्ज़िश न भी  हो, आज़ार रुकती नहीं ।

भूलने वाले को भुलाने के लिए, क्या  चाहिए 
बस अपने सीने में, उसके जैसा दिल  चाहिए ।

दरियादिल है ज़िन्दगी, वो तो दे ही देगी
चाहे कुछ भी न माँगो वो सब कुछ देगी ।

जो छोड़ के गया है, लौट आए ज़रूरी नहीं 
परिंदे लौट आते हैं, शाम को, हर कोई नहीं ।

आजकल वक्त आता है नामाबर बनकर
बड़ी मुहब्बत से कुछ पुरानी यादें लेकर ।

यादों से जो  महक उठा करती है 
दिल का चमन महकाया करती है ।

बादे सबा= सुबह की पुर्वैया हवा।
सफ़ीना= कश्ती । नामों नसब= वंशावली ।
बरतर= अधिक । मंसूब= मँगेतर। तकमील = पूर्णता।
जबल= पर्वत। लग्ज़िश= चूक। आज़ार= बीमारी।
नामाबर = डाकिया। आबशार= झरना।महफ़ूज़= सुरक्षित।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

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