ऐ बादे सबा, तुझको मेरा नमन
तूने महका दिया है , मेरा चमन।
हर आहट पे मेरा बचपन मौज़ूद रहता है
हर याद में वो ख़याल महफ़ूज़ रहता है ।
कागज़ का सफ़ीना था, और सवार हो लिए
रज़ा दिल की; छोड़ा अंजाम, किस्मत के लिए ।
जहाँ मिली नफ़रत वहाँ, कुछ प्यार देता गया
नामों नसब चलाना है, ये ख़याल रखता गया ।
मुझे बरतर मानने की, गलती करना नहीं
फिर कहोगे इन्सान है, ये तो मसीहा नहीं ।
ये तो हकदारियाँ हैं, तनहाईयाँ नहीं
इनसे जुदा हो के रहना, आसान नहीं ।
बहुत पहले से तन्हाई मेरी मंसूब है
अब इस रिश्ते को तकमील दे दी है ।
कभी कोई माँगे तो, दे भी दिया करो
ज़िन्दगी की इज़्ज़त, कर भी लिया करो।
ख़ूबसूरत चेहरों की तलाश नहीं है
जो मुस्कान सुकून दे, वही ख़ूबसूरत है ।
कहीं जबल, कहीं वादी, ज़िन्दगी रुकती नहीं
कोई लग्ज़िश न भी हो, आज़ार रुकती नहीं ।
भूलने वाले को भुलाने के लिए, क्या चाहिए
बस अपने सीने में, उसके जैसा दिल चाहिए ।
दरियादिल है ज़िन्दगी, वो तो दे ही देगी
चाहे कुछ भी न माँगो वो सब कुछ देगी ।
जो छोड़ के गया है, लौट आए ज़रूरी नहीं
परिंदे लौट आते हैं, शाम को, हर कोई नहीं ।
आजकल वक्त आता है नामाबर बनकर
बड़ी मुहब्बत से कुछ पुरानी यादें लेकर ।
यादों से जो महक उठा करती है
दिल का चमन महकाया करती है ।
बादे सबा= सुबह की पुर्वैया हवा।
सफ़ीना= कश्ती । नामों नसब= वंशावली ।
बरतर= अधिक । मंसूब= मँगेतर। तकमील = पूर्णता।
जबल= पर्वत। लग्ज़िश= चूक। आज़ार= बीमारी।
नामाबर = डाकिया। आबशार= झरना।महफ़ूज़= सुरक्षित।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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