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Wednesday, May 4, 2022

ज़िंदगी

वाह, क्या ख़ूब दिलफ़रेब ज़िन्दगी है 

इम्तिहानों की कैसी, नुमाइश लगी है ।


यहाँ तो हर तरफ़ बस आईने ही लगे हें 

लोग हें, इश्के मजाज़ी देखने में लगे हें । 


इश्क़े हक़ीक़ी के वास्ते एक उम्र चाहिए  

इबादत करने के लिए भी समझ चाहिए ।


रुलास आए तो समझना इश्क़ हो गया 

जिसे ख़ुद से ज़्यादा चाहा वो रुला गया । 


यही चाह है मेरे हिस्से की धूप पाता रहूँ 

और अपनी  कश्ती का  नाख़ुदा बना रहूँ ।


हालात बदल जाने  से पैमाने बदल जाते हें 

ये कैसी  मनमानी है, इन्सान बदल  जाते हें ।


ज़िन्दगी में  सादगी ही बस  एक ख़ज़ाना है 

बाक़ी कुछ  भी कर लो, सब एक  बहाना है ।


ज़िन्दगी में रहती  तब तक ही  ख़ासियत  है 

जब तक चेहरे पे रहा  करती, मासूमियत है ।


हर तरफ़ यहाँ  बिखरा हुआ  पड़ा जलाल  है 

जमाल का अब भी क्या किसी को मलाल है ?


सारी उम्र  का असासा, मेरी  यही इबादत  है 

मुझसे मिलने की यही तज्वीज़ ए अयादत है । 


जब भी मन करे, इबादत  कर लिया  कीजिए 

इबादत  ऐसी बरबत, कभी  भी बजा  लीजिए ।


इश्क़े मजाज़ी = दुनियावी मुहब्बत ।

इश्क़े हक़ीक़ी = रब के लिए मुहब्बत।

नाख़ुदा = नाविक । जलाल = भव्य प्रकाश। जमाल = हुस्न।

तज्वीज़ ए अयादत = बीमारी के बहाने से मिलना । 

बरबत = lyre. असासा = सामान ।


ओम् शान्ति:

अजित सम्बोधि।


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