वाह, क्या ख़ूब दिलफ़रेब ज़िन्दगी है
इम्तिहानों की कैसी, नुमाइश लगी है ।
यहाँ तो हर तरफ़ बस आईने ही लगे हें
लोग हें, इश्के मजाज़ी देखने में लगे हें ।
इश्क़े हक़ीक़ी के वास्ते एक उम्र चाहिए
इबादत करने के लिए भी समझ चाहिए ।
रुलास आए तो समझना इश्क़ हो गया
जिसे ख़ुद से ज़्यादा चाहा वो रुला गया ।
यही चाह है मेरे हिस्से की धूप पाता रहूँ
और अपनी कश्ती का नाख़ुदा बना रहूँ ।
हालात बदल जाने से पैमाने बदल जाते हें
ये कैसी मनमानी है, इन्सान बदल जाते हें ।
ज़िन्दगी में सादगी ही बस एक ख़ज़ाना है
बाक़ी कुछ भी कर लो, सब एक बहाना है ।
ज़िन्दगी में रहती तब तक ही ख़ासियत है
जब तक चेहरे पे रहा करती, मासूमियत है ।
हर तरफ़ यहाँ बिखरा हुआ पड़ा जलाल है
जमाल का अब भी क्या किसी को मलाल है ?
सारी उम्र का असासा, मेरी यही इबादत है
मुझसे मिलने की यही तज्वीज़ ए अयादत है ।
जब भी मन करे, इबादत कर लिया कीजिए
इबादत ऐसी बरबत, कभी भी बजा लीजिए ।
इश्क़े मजाज़ी = दुनियावी मुहब्बत ।
इश्क़े हक़ीक़ी = रब के लिए मुहब्बत।
नाख़ुदा = नाविक । जलाल = भव्य प्रकाश। जमाल = हुस्न।
तज्वीज़ ए अयादत = बीमारी के बहाने से मिलना ।
बरबत = lyre. असासा = सामान ।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
No comments:
Post a Comment