वो ग़म से मुझे आबाद करें
हम ग़म के सहारे जीते हें
हम दर्द के मारों को अपने
दिल में ही मुकम्मल करते हें ।
वो हवा चले चाहे बासन्ती
या फ़िर लूओं की हो रानी
हमको तो दोनों लगतीं हैं
अपनी सी जानी पहचानी ।
कई दर्द तो होते दर्द भरे
कई दर्द भी मीठे होते हैं
जो दर्द हमें दमसाज़ करें
वो दर्द सुनहरे होते हैं ।
कोई आवाज़ कभी दे देता है
यूँ ही से मगर, बाबत में नहीं
फ़िर कितना अच्छा लगता है
उसको भी पूछो, है कि नहीं?
बेपर्दा रहूँ मैं या दर पर्दा
मुझको नहीं है ग़म ए फ़र्दा
मैं हूँ ही नहीं आमिल कब से
सिवा हम्दो सना नहीं कोई कर्दा।
मन में जो भी तुम को भाए
करलो तुमतो जी भर राम
मेरा मन तो हरदम पाए
केवल तुम में ही विश्राम ।
दमसाज़= हमरंग। दरपर्दा = पर्दे में।
ग़म ए फ़र्दा = कल का डर। आमिल= doer.
हम्दो सना= prayer. कर्दा = किया हुआ।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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