मैं कलंदर हूँ गुफ़्तार गोई किया करता हूँ
मैं प्यार हूँ लहरों को आगोश में रखता हूँ
मैं सिकंदर नहीं जो ज़मीन को नापता हो
फ़िज़ाओं को लपेट, उनसे प्यार करता हूँ ।
प्यार की ख़ातिर झुके उसे आसमाँ कहते हैं
प्यार की ख़ातिर रोये उसे शबनम कहते हैं
जिन्होंने प्यार किया है , उनसे पूछ लीजिए
वो जानते हैं कि प्यार को ही ख़ुदा कहते हैं।
जो सब जानते हैं उसे राज़ नहीं कहते हैं
राज़ तो राज़ है, उसे सीने में छुपाते हैं
एक और भी राज़ की बात हम बताते हैं
वही होता राज़ जो हम आपको बताते हैं।
नज़रें मिलती रहीं, नाआशना क़ायम रही
फ़ासला घटता रहा, दूरियाँ मुकम्मल रहीं
है तेरे रहम का ये असर, ऐ परवरदिगार
हम दूर होते गए, परछाइयाँ मिलती रहीं।
अश्क पी पी कर जिया और मुस्कुराता रहा
हस्बे आदत ये ज़ख़्म ए कारी छिपाता रहा
मुझको मिली बख़्शीश में, ताब ताउम्र की
कैसा फ़लसफ़ा था, फ़ैसला फिसलता रहा।
सिकंदर की फ़ितरत है तख़्त नशीनी की
कलंदर की फ़ितरत है , मलंग बाज़ी की
कभी नज़रे इनायत हो तो देख लेना कैसे
हम खड़े हैं जहाँ, मुड़ी थी नज़र आपकी।
मेरी सूरत न देखें वो तो वक़्त की पाबंद है
एक ऐसी हसरत है जो अरसे से नज़रबंद है
मुझे देखना है तो शफ़क में देख लेना, जहाँ
क़ौस ए क़ज़ह को बखेर रहा नख़्लबंद है।
मेरी फ़ितरत पर तुम न जाना, मैं कलंदर हूँ
बिना साहिल के दरिया में बहता समन्दर हूँ
मेरी क़बा ए जिल्द में न उलझ के रह जाना
बाहर में सिर्फ़ अक्स है मेरा, मैं तो अन्दर हूँ ।
मैं पिघल कर रातभर, बहता हूँ बनके चाँदनी
जैसे सरगम कोई, बहता हो बनकर रागिनी
मुस्कराहट तो वही है कि धूप जैसी खिल उठे
या चाँद जैसे बख़्श दे ख़ुद की नूरी चाँदनी।
कलंदर = सूफ़ी, मनमौजी। गुफ़्तारगोई= बातचीत ।
शबनम= ओस। नाआशना= estrangement.
हस्बे आदत= आदतन। ज़ख़्म ए कारी= fatal wound.
ताब= गर्मी। ताउम्र = उम्र भर। तख़्तनशीनी= गद्दी पे बैठना।
मलंगबाज़ी= बेफ़िक्री। क़ौस ए क़ज़ह= इंद्र धनुष
नख़्लबंद= बाग़वान। शफ़क= क्षितिज पर लाली।
साहिल= किनारा। क़बा ए जिल्द= जिस्म की चमड़ी।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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