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Monday, August 1, 2022

मम माया दुरत्यया

पहले कभी न जो किसी को था बताया 
हो ऋषि योगी या भक्त, नहीं था बताया 
ये कैसी सख़ावत दिखाई , तुमने कान्हा 
वो भेद सहजमें निज सखा को, बताया!

तुम्हारी माया दुस्तर , ये तुमने बता दिया
तीनों गुणों से भरपूर, ये तुमने बता दिया
कोई न इसको भेद सके, और बता दिया
तुम्हीं मसला तुम्हीं वसीला भी बता दिया।

Kanha , it's a clean confession!
Who makes such a confession?
Can you provide  any  example? 
How fortunate  was dear Arjun!

क्या साफ़गोई है, कान्हा तुमने दिखा दिया 
कितने दियानतदार हो , तुमने बतला दिया 
हमारी इबादत अगर जो मुकम्मल है रहती 
माया का पर्दा हटता है, तुमने बतला दिया।

तुमको याद रखना कोई मुश्किल तो नहीं है 
तुम्हीं जब आमिल, मुझे कुछ करना नहीं है 
कभी हो पोशीदा कभी पोलाब, तुम्हारे संग
आँख मिचोली  खेलना मुश्किल  तो नहीं है।

सख़ावत=उदारता। वसीला=ज़रिया।
दियानतदार=ईमानदार। पोशीदा=invisible.
पोलाब=visible.

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

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