तू मेरे साथ रहता तो आहटें साँस की सुनता
हर साँस में जो बह रही उस आह की सुनता
किसके लिए मन में मेरे, ये चाहत समाई है
तू मेरा बनके दिखलाता तो तू राज़दाँ बनता!
मुझे देखके चुपचाप, क्यों तुझे हो रही हैरत
जो तू देखता मुझमें, वही तो वक़्त की ग़ैरत
चाहा था जो तुमने सुपुर्द करना, मेरे हाथ में
कर देते न होता मयस्सर कभी, दर्द ए सौरत!
मैं उलझा रहा उसमें, तुम उलझाए रहे मुझको
न मैं पा सका उसको, न तुम पा सके मुझको
पाने के लिए कुछ भी , कुछ खोना ज़रूरी है
अच्छा हो देखें हम भी, क्यों न खो सके ख़ुदको ?
ग़ैरत=आत्म सम्मान । दर्द ए सौरत=तीव्र दर्द ।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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