कौन आता है यहाँ पे रहने के लिए
सभी आते हैं वापस, जाने के लिए 
क्या आफ़ताब कभी रुका है यहाँ?
उसे पता है रात बनी चाँद के लिए।
ग़लतियाँ हम तभी किया करते हें
जब हम यही भूल ज़ाया करते हें 
कि ये मक़ाम नहीं, एक क़याम है 
यहाँ हम इन्तिज़ार किया करते हें।
मुझे  पता है, मैं कुछ नहीं जानता 
मैं कुछ हूँ, ये मैं भरम नहीं पालता 
चींटी देखी? कितनी छोटी होती है 
मैं उसको  भी  बनाना नहीं जानता।
न बुलबुल के पंखों में रंग भर सकूँगा 
न चंपा या  जूही को महक दे सकूँगा 
घास का तिनका सबके आगे झुकता 
जानता हूँ, मैं उतना भी  न कर सकूँगा।
उसका करम है, हौसला मिलता रहा 
जीने के लिए एक बहाना मिलता रहा 
कुछ माँग लूँ ? ये मेरी फ़ितरत में नहीं 
जो बख़्शा, सर झुकाए समेटता रहा।
मक़ाम = goal. क़याम = stopover.
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
 

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