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Tuesday, April 23, 2024

जीत ही गई ये दुनिया

न चाहते हुए भी मिल गई ये दुनिया 
बड़ी  पुरअसर है  साहब ये  दुनिया।

मैं कहता ही रहा, मुझ पर रहम करो 
ख़ैरात में भी नहीं  दरकार ये  दुनिया।

हाँ  मैं  बिल्कुल  होश  में हूँ,  साहब
नहीं चाहिए मुझे आपकी ये दुनिया।

ये दुनिया जो बदलती है रंग हर दम
हर रंग पे रिझाने में माहिर ये दुनिया।

दामन  में  दाग़  लगा  लगा  करके 
जीतने का हुनर सिखाती  ये दुनिया।

हरदम ऐजाज़ होते रहते हैं कायनात में 
मग़र हशर: ए मगज़ में उलझी ये दुनिया।

ये गोली तमंचे  चीख़ों  की दुनिया 
नहीं चाहिए मुझे ये  ख़ूँरेज़ दुनिया।

सिक्कों के आगे सिमटती ये दुनिया 
नहीं चाहिए ग़ैरत लुटाती ये दुनिया।

शफ़्फ़ाफ़ निगाहें नापसंद हैं इसको 
रूहानियत  दफ़्न करती ये  दुनिया।

वो सितम ढाते हैं और मुस्कुराते हैं 
है न  सितम-ज़रीफों  की ये दुनिया?

हूँ अकेला, खड़ा देखता हूँ ये दुनिया 
थक चला हूँ , जीत ही गई ये दुनिया?

पुरअसर = प्रभाव शाली ।ऐजाज़=चमत्कार। 
कायनात= स्रष्टि।हशर: ए मगज़= दिमाग़ी कीड़ा।
ख़ूँरेज़ = ख़ून बहाने वाली।शफ़्फ़ाफ़= पारदर्शी।
सितम-ज़रीफ़=हँस हँस के क़त्ल करने वाला।

ओउम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

Thursday, April 18, 2024

आज बस मुस्कुरा देना!

  बस कोई मुस्कुरा भर दे, इतना ही चाहता हूँ 

यह करम मुझ पर कर दे, इतना ही चाहता हूँ।

 वो मुस्कान ए लब हो या इब्तिसामे चश्म हो 

यह तोहफ़ा  है प्यार का, इसे पाना चाहता हूँ।


मुझे नहीं चाहिए बड़े बड़े वायदे वो प्यार के 

ना ही मुझे  चाहिए वो अल्फ़ाज़  इकरार के।

बोल दिया तो बात का वज़न बिखर जाता है 

बिना बोले कहदेना, ये जादू पास मुस्कान के !


ये बड़ी नायाब दौलत है, यही जो मुस्कुराहट है 

नाहीं वहाँ कोई आहट है और नाहीं घबराहट है।

न बातों को चमकाने की  कोई खुसफुसाहट है 

बस चेहरे पे लिख जाती दिलकी जगमगाहट है!


अगर जो रश्क है मुझसे, बस मुस्कुरा भर देना 

मैं पास में हूँ या दूर में हूँ, बस मुस्कुरा भर देना।

लफ़्ज़ तो बेमानी हो जाते हें उस सुकूत के आगे 

जिसका काम है  दम ब दम, सुकून से  भर देना!


मुस्कान ए लब= होठों पे मुस्कान। 

इब्तिसामे चश्म = आँखों की हँसी।

रश्क= किसी के जैसा होने की चाहत।

सुकूत= सन्नाटा। सुकून = चैन।


ओम् शान्ति:

अजित सम्बोधि।

Sunday, April 7, 2024

Happy birthday to you, Alok!

 Happy birthday to you, Alok!

How you remind me of an oak?

Yea yea the same familiar oak!

The dependable & durable oak!


Hallmark marks one’s consistency 

Piston pin of fealty and constancy!

Consistency builds the momentum 

Essential.  for  gaining   efficiency!


It’s not a  matter of  some joke 

To remove the billowing smoke 

Of rampant ignorance and then

Become  timeless  like  the oak!


One has to bet oneself to evoke 

As  if  one  is  going  to  invoke 

The essentiality of being an oak!

Happy  birthday  to  you, Alok!


Om Shantih

Ajit Sambodhi