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Tuesday, April 23, 2024

जीत ही गई ये दुनिया

न चाहते हुए भी मिल गई ये दुनिया 
बड़ी  पुरअसर है  साहब ये  दुनिया।

मैं कहता ही रहा, मुझ पर रहम करो 
ख़ैरात में भी नहीं  दरकार ये  दुनिया।

हाँ  मैं  बिल्कुल  होश  में हूँ,  साहब
नहीं चाहिए मुझे आपकी ये दुनिया।

ये दुनिया जो बदलती है रंग हर दम
हर रंग पे रिझाने में माहिर ये दुनिया।

दामन  में  दाग़  लगा  लगा  करके 
जीतने का हुनर सिखाती  ये दुनिया।

हरदम ऐजाज़ होते रहते हैं कायनात में 
मग़र हशर: ए मगज़ में उलझी ये दुनिया।

ये गोली तमंचे  चीख़ों  की दुनिया 
नहीं चाहिए मुझे ये  ख़ूँरेज़ दुनिया।

सिक्कों के आगे सिमटती ये दुनिया 
नहीं चाहिए ग़ैरत लुटाती ये दुनिया।

शफ़्फ़ाफ़ निगाहें नापसंद हैं इसको 
रूहानियत  दफ़्न करती ये  दुनिया।

वो सितम ढाते हैं और मुस्कुराते हैं 
है न  सितम-ज़रीफों  की ये दुनिया?

हूँ अकेला, खड़ा देखता हूँ ये दुनिया 
थक चला हूँ , जीत ही गई ये दुनिया?

पुरअसर = प्रभाव शाली ।ऐजाज़=चमत्कार। 
कायनात= स्रष्टि।हशर: ए मगज़= दिमाग़ी कीड़ा।
ख़ूँरेज़ = ख़ून बहाने वाली।शफ़्फ़ाफ़= पारदर्शी।
सितम-ज़रीफ़=हँस हँस के क़त्ल करने वाला।

ओउम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

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