बातें करने फिर फिर आए
नज़रों से पर नज़र न आए
शाम हुईँ सूनी हें जबसे
ढलता सूरज रुक ना पाए।
कभी यूँ ही फ़िर रूँठ के जाए, समझ न आए
उलझी उलझी इन राहों में
दिल घबराए, पार न पाए, निकल न पाए।
बातें करने फिर फिर आए
नज़रों से पर नज़र न आए ।
मुझे कोई क्यों, यूँ भरमाए
धूमिल सी परछाईं बनके, अपने ही सपने बन आए
मन के अंधेरे , शाम सबेरे
भूली यादें लेकर आए, भोला मन फिर फिर चकराए।
बातें करने फिर फिर आए
नज़रों से पर नज़र न आए ।
ख़्वाब बने हैं शाम के साये
दर्द भरे बादल घहराये, कैसे छाए, मन को डराये
सब कुछ तो है रीता रीता
मन बहलाने आँसू आए, लौट लौट के फिर फिर आए।
बातें करने फिर फिर आए
नज़रों से पर नज़र न आए ।
दिल के भेद न हर कोई जाने
गहरे उतरे सो ही जाने, सूने को सूना पहिचाने
खोई खोई सी ये आँखें, भारी भारी सी ये साँसें
हर कोई इनको पढ़ नहीं पाए, समझाने से समझ न पाए।
बातें करने फिर फिर आए
नज़रों से पर नज़र न आए।
ओम शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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