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Saturday, July 13, 2024

क़दमबोसी की चाहत कबसे कर रहा हूँ

मालिक तेरा फ़ज़ल है, जिससे मैं जी रहा हूँ 

बख़्शा है तूने जो कुछ, उसीसे मैं  जी रहा हूँ 
मुझमें कहाँ थी हिकमत, तुझ को पा सकूँ मैं
तेरा ही करम तो है ये , मैं  उसी से जी रहा हूँ।

जब से  सम्हाला  होश , मैं चलता  जा रहा हूँ 
मुश्किलों के दरीचों के पार , बढ़ता जा रहा हूँ 
ज़िन्दगानी  रहगुज़र, दम ब दम बनती  रही है  
तेरे क़दमों की आहट मैं , हरदम सुनता रहा हूँ।

मुझको तेरी ही चाहत , अरसे से  कह रहा हूँ 
जो कुछ भी है वो तेरा , तुझसे  ही पा  रहा हूँ 
नज़रे इनायत का तेरी , हूँ  मोहताज  हर पल 
क़दमबोसी की चाहत मैं , कबसे कर  रहा हूँ।

ये ना समझ लेना कि , मैं  बहाना बना रहा हूँ 
तुझको लुभाने को कोई, जाजम बिछा रहा हूँ 
मेरी ग़ैरत को न इतना, कम करके तू आँकना
मैं हार करके सब कुछ , तेरी दुआ कर रहा हूँ।

क़दमबोसी=क़दम चूमना। हिकमत=योग्यता।
करम=कृपा।रहगुज़र=राह। दम ब दम=पल पल।
ग़ैरत=ख़ुद्दारी। क़दमबोस=क़दम चूमने वाला।

क़दमबोस
अजित सम्बोधि।

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