पहले भी यहाँ आया, कुछ ख़्वाब यहीं भूल गया
आज उनसे रूबरू होने को, मैं फ़िर से आ गया।
ये कचनार का पेड़, मेरा गवाह
ये वहीं खड़ा है, रस्ते पे निगाह
मानता है मुझको अपना ही
इसीलिए रखता है मेरी चाह।
ये वादियाँ हैं या कोई साज़ है
इन वादियों में मेरी आवाज़ है
मैं प्यार से आवाज़ लगाता हूँ
ये करने लगती रियाज़ है।
वो आसमान देखिए क्या कर रहा
मुझे अपने आगोश में लिए ले रहा
इतना प्यार तो किसी ने नहीं दिया
जितना ये बयाबान मुझे दे रहा।
आज क्या आगया मैं यहाँ फ़िर से
लगता है सारे सावन लौटे फ़िर से
सोचिए ज़िन्दगी में ग़र सावन न हो
क्या मतलब है जनम लूँ मैं फ़िर से।
मैं बरबख़्त हूँ मेरा ख़ैरख़्वाह मुझे लेके यहाँ आ गया
रब का ममनून हूँ वो मेरा हमदम बनके यहाँ आ गया।
रूबरू = आमने सामने।रियाज़ = practice.
आग़ोश = embrace. बयाबान = जंगल।
बरबख्त = fortunate.ख़ैरख़्वाह = भला चाहने वाला।
रब = ईश्वर।ममनून = thankful. हमदम =दोस्त।
ओम शान्ति:
अजित सम्बोधि
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