जब जब बरसे बादरिया
मैं बन जाता बावरिया
जब जब सुनता बाँसुरिया
मैं याद करूँ साँवरिया
सावन मुझे भिगोता है साँवरिया मुझे सँजोता है
जोड़ा सावन साँवरिया का मन में प्यार पिरोता है।
साँवरिया ऐसा बाजीगर
दिन में बन जाता जादूगर
रात में जब मैं सोता हूँ
तब जाके होता उजागर
दिन में बादल बन के बरसता रात को रोशन होके बरसता
ऐसी बनी जुगलबंदी ये कोई देख न पाया मुझे तरसता।
ये जो सावन की फुहारें हैं
क्या ये प्यार के छिटकारे हैं?
साँवरिया की बंदनवारें हैं?
या मुहब्बत की जागीरें हैं?
मैं बताऊँ तुम्हें ऐ मेरे दुलारे ये इस बंजारे की मनुहारें हैं
सुन साँवले साँवरिया, ये एक तड़पते दिल की पुकारें हैं।
क़दीम मुरीद
अजित सम्बोधि
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