अब का सावन बड़ा ही सुहाना रहा
नाख़ुश होने का न कोई बहाना रहा
बहारों की झड़ियाँ बरसती रहीं
अब्र- ए- बाराँ मेरा सिरहाना रहा।
मैं हँसता रहा और वो हँसाता रहा
वो बरसता रहा मैं खिलखिलाता रहा
मुसलसल फुहारों से नहलाता रहा
मैं नहाता रहा गुनगुन गुनगुनाता रहा।
कभी दम साधे मुझको बहकाता रहा
कभी कड़क कर मुझको डराता रहा
कभी बिजली बनके चौंधियाता रहा
मैं दम साधे मन ही मन मनाता रहा।
तुम्हारी याद मुझको सताती रहेगी
तुम्हारी कमी मुझको खलती रहेगी
रुआँसे मन से तुम्हें बिदा कर रहा
तुम्हारी याद में आँखें बरसती रहेंगी।
अब्र- ए- बाराँ = बारिश से भरी घटायें।
मुसलसल = लगातार।
तुम्हारा दिलबर
अजित सम्बोधि
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