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Friday, December 26, 2025

वृंदावन की गलियों में

 ये जो मैं आज यहाँ चल रहा हूँ, ये जादू से भरी गलियाँ हैं 

ज़र्रे ज़र्रे में लिपटी हुई, यहाँ पर मुरलीधर की पगथलियाँ हैं।


ये वृन्दावन की गलियाँ हैं जहाँ जुटा करतीं थीं सहेलियाँ हैं 

कान्हा की बाँसुरी की धुन पर यहाँ, थिरकतीं थीं गोपियाँ हैं।


ये जो कदम्ब का पेड़ है, इस पर झूला करते थे, कन्हैया हैं 

साथ में उनके झूलती थीं राधा जी, होती थीं गल बहियाँ हैं।


आज हम पहुँच गये हैं रमण रेती में, लेते हैं इसकी बलैयाँ हैं 

हाँ हाँ यही तो वो रेती है जहाँ कभी करते थे रमण कन्हैया हैं।


यहाँ जमुना बह रही हैं, किनारे पर जो दिख रहीं चमेलियाँ हैं 

वो तुम्हारी याद में गोपाल, अब भी सिसकती कुंज गलियाँ हैं।


तुम जो गये लौट के न आये श्याम, राह देखती रहीं अखियाँ हैं 

तुम्हारे गीता के वायदे को याद कर कर, गुज़ारतीं  तन्हाईयाँ हैं।


यहाँ पर आने पर पाया मैंने, हर सिम्त, यादों की परछाइयाँ हैं 

हर तरुवर की कलियों की ज़ुबाँ पर, बस तुम्हारी कहानियाँ हैं।


हर एक ज़ुबाँ पर तुम हो, तुम्हें देखने को तरस रहीं पुतलियाँ हैं 

घनश्याम बहुत देर हो चुकी है, अब और न बुझाना पहेलियाँ हैं।


पर कैसे भूलूँ कि घनश्याम से तुम ही कराते हो मेरी गलबहियाँ हैं 

तुमने अपना नाम-रूप मुझे दे कर, शुरू से किया करम कन्हैया है।


ये  जो मैं  आज  यहाँ  चल  रहा  हूँ, ये  जादू  से  भरी  गलियाँ  हैं 

ज़र्रे  ज़र्रे  में  लिपटी  हुई, यहाँ  पर  मुरलीधर  की  पगथलियाँ  हैं।


मुरीद ए मुरारी 

अजित सम्बोधि 

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