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Wednesday, October 1, 2025

मैंने वादा कर लिया है

 मैंने वादा कर लिया है 

मुठ्ठियों को खोल दिया है 


मैं पलकें बिछाऊँगा 

मैं नज़रें बिछाऊँगा 

मैं तुम्हें ना भुलाऊँगा 

मैं वादे निभाऊँगा 

कैसा  करम है तेरा 

कैसा रहम है तेरा 

मैंने वादा कर लिया है 

मैंने दिल खोल दिया है 

                   सब रानाइयाँ सजाऊँगा 

                   तनहाइयाँ मिटाऊँगा 

                    रोने न दूँगा अकेले में 

                     रोने न दूँगा मेले में 

                     आँखों में जो नमी है तेरी 

                      पलकें जो झुकी हैं तेरी 

                      क़सम है ये अब मेरी 

                       हर शमा जलाऊँगा 

                       मैंने वादा कर लिया है 

                        ख़ुद को तैयार कर लिया है 

कभी था जो सरताज 

किसने दिया था वो ताज 

तूने ही दिया था साज़ 

तूने ही बख्शा था ताज 

कैसे हो गया मोहताज 

मैं दिल नवाज़ बनाऊँगा 

फ़िर से नाज़ करवाऊँगा 

मैंने वादा कर लिया है 

शुआओं को खोल दिया है 

               फ़लक से ज़मीं तक सभी 

                सूना पड़ा है जो अभी 

                 नामुमकिन दिखे, था जो मुमकिन 

                  मैं उसको बनाऊँगा मुमकिन 

                  मैं ख़ुदी को मनाऊँगा 

                   मैं तुमको मनाऊँगा 

                   मैंने वादा कर लिया है 

                    जो सोया था जगा दिया है 

कैसी झिलमिल सी झलकती हैं 

कैसी रिमझिम सी बरसती हैं 

ये बे इन्तिहा इनायतें तेरी 

 ये दिलाराइयाँ तेरी 

ये चाँद की शुआऐं 

ये मुस्कुराती रानाइऐं

मैं इन्हें सब तक पहुँचाऊँगा 

सब को दिल से लगाऊँगा 

मैंने वादा कर लिया है 

मैंने वादा कर लिया है 


 रानाइयाँ = सजावटें।शमा = दिया।

दिल नवाज़ = दिल को ख़ुशी देने वाला।

शुआओं/ऐं = किरणें। फ़लक = आसमान।

दिलाराइयाँ = दिल में छुपी ख्वाहिशें/ ख़ुशियाँ।


क़दम बोस 

अजित सम्बोधि 

Friday, September 26, 2025

परिन्दा बना दे।

 परिंदों के लिए तो नहीं कोई बंदिश 
उड़ जाते हैं जहाँ की होती ख़्वाहिश 
कोई सरहद उनको  रोक नहीं पाती 
कोई मज़हब  बना  न पाता  दबिश।

 कैसे उड़ते हैं पंख  फैला कर 
कैसे ख़ुश होते हैं  गीत गाकर 
सारा आसमाँ  बना  ख़ैरख़्वाह 
सब चहकते हैं उनको देख कर।

कितनी ख़ुशनुमा है उनकी ज़िंदगी 
हर दरख़्त करता है उनकी बन्दिगी 
जहाँ चाहते हैं  बना लेते हैं नशेमन 
हर मोड़ पे पलकें बिछाती ज़िन्दगी।

मैं तो थक गया हूँ इस ज़िन्दगी से मालिक 
इन नफ़रतों से, इन दरिंदगीयों से  मालिक 
क्या हो गया है तेरे  इन्सान को ऐ मालिक 
अच्छा हो मुझे  भी परिंदा बना दे  मालिक।

ख़ैरख़्वाह = भला चाहने वाला।नशेमन = बसेरा।

ओम शान्ति:
अजित सम्बोधि 

Tuesday, September 23, 2025

Ever thought?

 Ever thought why people keep fighting 

Even in sleep they don’t forget fighting!


Be it any religion, you see them fighting 

Be it any nation, you find them fighting!


Every nation spends 80% gdp on fighting 

Asks people to live on 20% sans fighting!


Aristotle wanted a philosopher to be a ruler

But Harishchandr only was such a one ruler!


We have reached a  cul de sac,  haven’t we?

Let’s look inside ourselves,  shouldn’t  we?


A wise guy pointed out that ‘I’ is an illness

It creates 80K thoughts/day in the process!


Let’s swap ‘I’ with ‘We’ that denotes wellness

Each thought will be for ‘We’for real progress!


Shouldn’t we try it, though it looks trifling?

Let’s hope it ends, endless rage for fighting!


sans = without. cul de sac = dead end of a street 

in the form of a circle, for turning back.


Om Shantih

ajit sambodhi 


Thursday, September 18, 2025

बस एक मुस्कान चाहिये

वो पूछने लगे आपको क्या चाहिए 

मैंने पूछा किस बाबत क्या चाहिए?

कहने लगे कि ख़ुश  रहने  के लिए 

मैंने कहा सिर्फ़ एक मुस्कान चाहिए।


 तारीकी मिटाने को भला क्या चाहिए 

बस एक  जलता  हुआ  दिया  चाहिए 

 दिल की मायूसियत मिटाने के लिये 

बस  एक  नन्ही  सी  मुस्कान  चाहिए।


ख़ुश होने के लिए न बड़ी दौलत चाहिए 

और ना ही बहुत सी शोहरत ही चाहिए 

 दिल की ख़ुशी के लिए बस नक़द-दम 

 तहे दिल से निकली एक मुस्कान चाहिए!

 

तारीकी = अन्धकार। मायूसियत = उदासी।

 नक़द-दम = सिर्फ़।तहे दिल = अन्तरतम।


ओम शान्ति:

अजित सम्बोधि 

Friday, September 5, 2025

अन्दाज़ ए इबादत।

 तुम जो कहो नग़मा-ए-उल्फ़त सुनाऊँ?

कुछ    माज़ी    सर…गोशी    दुहराऊँ?

तुम्हारे  सरगम   की  ख़ातिर   दरकार 

दिल  में  छिपा   मेरा  बरबत  बजाऊँ?


 दिल की परतों में दबा वो   भेद सुनाऊँ ?

क़ैफ़ियत गुमनाम आज उजागर कराऊँ?

जुबाँ पे ला न पाया जिसे मैं अभी तक 

वो अन्दाज़ ए बयाँ  भी तुमको  सुनाऊँ?


एक  तुम्हारी ख़ातिर ही जिन्दा हूँ,  समझे?

 तुम्हारे  सिवा  कुछ  न  चाहिए ,  समझे?

और बता दूँ  एक  राज़  की बात  तुमको  

 हररोज़ मरता हूँ, सो थक गया हूँ, समझे?

 

अन्दाज़ ए इबादत = बन्दगी करने का ढंग।

नग़मा ए उल्फ़त = प्यार का गीत।माज़ी = पुरानी।

सर गोशी = कानाफूसी।बरबत = एक वाद्य यन्त्र।

क़ैफ़ियत = पहचान।अन्दाज़ ए बयाँ = बोलने का ढंग।


ओम शान्ति:

अजित सम्बोधि।

Wednesday, August 27, 2025

paying gratitude

I bow to the rising sun
It gives life to everyone!

I smile and they too smile
Isn't that quite worthwhile?

I thank water and then drink it
It sates  before danger can hit.

I vow to remain humble
So  that I don't  bumble.

I thank all the foods that i feed on
They're my friends i depend upon.

I pray to God  before going to sleep
He remains awake, while I'm asleep!

Please God, fill me with compassion 
No passion compares with compassion!

Om Shantih 
ajit sambodhi 

Saturday, August 16, 2025

कान्हा से कुछ सवालात

 जन्माष्टमी के सुअवसर पर सभी कों शुभ कामनाएँ

 एवं प्रणाम:  अजित सम्बोधि।


भादों  की अँधेरी रात, जमुना  उफान पर

 देवकी वसुदेव क़ैद में, कंस के आदेश पर 

 क्या सोच के आधी रात को  कान्हा तुमने 

देवकी की गोद भरी, सूनी रखने को उम्र भर?


 तुमने जो अजीब ओ ग़रीबf दुनिया रची है 

क्या आज तक किसी के समझ में आई है?

  क्या इसलिए  कि कोई सवाल न पूछ ले 

तुमने पर्दे के पीछे  अपनी जगह बना ई है?

 

तुम्हारी कायनात का आग़ाज़ ओ अंजाम है?

मेरा  मन्तव्य है कि इसका कोई ओर-छोर है?

 माना कि  इन्तिहाई उम्दा और  करिश्माई है 

 मगर क्या ये अनन्य सवालों के घेरे में नहीं है?

 

तुमने हमको बनाया है, हम तुम्हारी औलाद हैं 

 हम तुम्हारी ईजाद हैं, फ़िर क्यों हम नाशाद हैं?

 क्या हमारे दिल नहीं है,  कोई   हम फ़ौलाद हैं ?

 तुम मिलते नहीं कैसे बतायें जो हमारी मुराद हैं?


तुम जब यहाँ आये थे तो, एक इन्सान बन के आये 

 मिलन जुदाई देखीं, गालियाँ खाईं, रणछोड़ कहाये 

मगर तुम्हारी पहिचान  तुम्हारी चिर मुस्कान ही  रही 

क्यों निभा न पा रहे हम सूत्रों को जो गीता में गिनाये?


अजीब ओ ग़रीब = रहस्यमय।कायनात = सृष्टि। 

आग़ाज़ ओ अंजाम = सीमा।इन्तिहाई = बेहद।

 ईजाद = आविष्कार।नाशाद = दुखी।फ़ौलाद = लोहा।

मुराद= अभिलाषा। मुरीद = चेला।

 

तुम्हारा  मुरीद 

 अजित सम्बोधि