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Tuesday, November 19, 2024

Nod of the Lord

 Let’s watch every nod

Of the Lord 

That pulsates as breath

In beats of life & death.

To understand 

How things unfold!


It’s the nod

From the Lord

That strikes each chord 

Of our heart to applaud!

It makes us wade a ford 

Or else sign some accord.


No one visits us on one’s own 

Everyone is sent by him, alone!

Let’s welcome, not only as a friend 

Let’s greet breath as a kind of herald!

Don’t shrug it off, it’s from the lord

It is not tailwind. Mark! It’s his nod!


Breath is the nod of god

Breath is endlessly broad.

Let’s prod ourself & plod

To see life in a lump of sod.

Breath enjoins us upon god

To let us in the amity of god!


Om Shantih

Ajit Sambodhi

Thursday, October 31, 2024

संग संग थे दीप जलाने।

कैसे भूले वायदे निभाने?
संग संग थे दीप जलाने!

रख लेता मन में  छुपा के 
सपनों के संग में सजा के।
इबादत के लिए  बचा के
दो घड़ी सब को भुला के।
काहे  न आये  तुम बुलाने
संग संग  थे  दीप  जलाने!

कैसा भी हो भले ही नशेमन
वहीं पर तो मिलता है अमन।
वही तो होता दिल का चमन
दिवाली का हो गया आगमन।
इसी बहाने से आ जाते बुलाने 
संग   संग   थे   दीप   जलाने!

हर गोशा मैं खोजा किया 
जा जा के तलाशा किया।
यादों  ने  किनाया  किया 
तेरी मुस्कान मैं ढूँढा किया।
तुम न आए पे दीप जलाने
संग  संग  थे  दीप  जलाने!

ये  मौक़े  न  हर  दिन आने 
बस बरस में इक बार आने।
क्या इतनी भी फ़ुर्सत न थी 
चले आते जो वायदा निभाने?
कब  आओगे  अश्क़  मिटाने?
संग  संग  थे   दीप   जलाने!

नशेमन = घौंसला। गोशा = कोना।
किनाया= इशारा। अश्क़=आँसू।

दिवाली की शुभ कामनायें
अजित सम्बोधि

दिवाली आ गई।

लो वो आ गई, लो वो आ गई 
मुंतज़िर थे हम, लो वो आ गई।
रौशनतर करने के लिए सबको 
आज फ़िर से याद उसे आ गई।
जिसे कहते हें सब दिवाली, वो 
फ़िर से अपनी दिवाली आ गई।

ज़िन्दगी इक सफ़र है सुहाना
साथ  रहते  हुए  हमने  जाना।
ये नेमतें  जो  हमको  मिली हें 
रब दी किरपा है , हमने  माना।
मिटाने को अँधेरे घनेरे आ गई 
अपनी दिवाली फ़िर से आ गई।

दम ब दम हम यों ही चलते रहेंगे 
मालिक तेरा नाम गुनगुनाते रहेंगे। 
गो कि  हम  बहकते  भी  रहते हें 
मुनव्वर  तेरे पास, हम आते रहेंगे।
तू हमारा है , दिलाने याद  आगई
प्यारी दिवाली आज फ़िर आ गई।

मुंतज़िर=इंतिज़ार करने वाला।
रौशनतर= और अधिक रौशन।
दम ब दम= हर दम।गो कि= यद्यपि।
मुनव्वर=ईश्वर।

दिवाली की शुभ कामनाएँ 
अजित सम्बोधि 

Wednesday, October 30, 2024

Festival of Lights!

We call Festival of Lights, Diwali!

It’s the biggest festival beside Holi.

Holi uses colors and Diwali floods

Of lights, to make everybody jolly!


Diwali drives away  all  darknesses 

That everyone one day experiences.

Yes, darkness has so many contours

But light  lights up all  the  recesses!


Light, yes, natural light, is life giving 

Its modes and colors keep on altering.

It may swap  sunning for burning, Or

It may melt the heart, it’s so softening!


I wish everyone a very happy Diwali 

Be he Chandan, Changez, or  Charlie!

Look for this lively wizard inside you 

Where there transpires nonstop Diwali!


Your chum

Ajit Sambodhi

Monday, September 16, 2024

है कोई अपना?

कोई आज तक , छू तक न पाया , अन्दर में मेरे 
सारी ख़ुशियाँ हटा न पाईं उदासियों के साए मेरे ।

इसमें किस को कुसूरवार ठहराऊँ आख़िर में मैं 
उसको या नसीब को? दौनों का तलबगार हूँ मैं।

तंग आगया हूँ मिलते मिलते लोगों के किरदार से
अरसा होगया है मुझको मिले हुए किसी अपने से।

कभी ऐसे ही चले आना, आकर के मिल भी जाना
बहाने बनाकर के तो हरकोई करता है आना जाना।

पता है कितने दिन बीत गए हें मुस्कुराहट देखे बगैर
बस मसनूई मुस्कुराहट दिखाई देती है, यही है ख़ैर।

एक दौर था जब चाँद सुन्दर हुआ करता था, है न?
एक अरसा हुआ अब दाग़दार  लगने लगा है, है न?

तलबगार=तलाश करने वाला।मसनूई= कृत्रिम।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि                                                                                                                                                      
                                                                                                                                                                               

Monday, August 26, 2024

कान्हा

ये दुनिया तुम्हारी, और मैं भी तुम्हारा, कान्हा 

तुम आते रहे हो अब आ जाओ फ़िर से कान्हा 

कितने जन्मों से तुमको पुकारता आ रहा हूँ मैं 

अबके न फ़िर से मायूस करो, मुझको कान्हा।


तुमने चरण धोये अपने बाल मित्र के, ऐ कान्हा 

अबकी बार अपने चरण हमसे धुला लो कान्हा 

 तुम तो लीला दिखाने में माहिर हो बेहद कान्हा 

अबके मेरे आँगन में भी दिखा दो खेला  कान्हा।


तुम्हारे सिवाये, अब कहाँ पे ढूँढूँ सहारा, कान्हा 

मेरे मन का अँधेरा कैसे मिटेगा, बताओ कान्हा 

रिझावों भुलावों का सहारा नहीं चाहिए, कान्हा 

तेरी रहमत के सिवा मुझे कुछ न चाहिये कान्हा।


मेरी आँखों के ये आँसू तो कभी देख ले, कान्हा 

ये जमुना की धारा है, तट पे फ़िर आजा कान्हा 

ये दिल की वादियाँ कब से सूनी पड़ी हें कान्हा 

कभी बाँसुरी फ़िर से इनमें बजा तो दे, कान्हा।


कन्चन - कामिनी से न बहलाना मुझको कान्हा 

इन खिलोनों से न मैं बहल पाऊँगा अब, कान्हा 

तू अब बना ले मुझको अपना पसन्दीदा कान्हा 

तमन्ना है कि उँगली पकड़ के चलूँ तेरी कान्हा।


तुम्हारी मुस्कुराहट का कोई सानी है क्या कान्हा 

तुम शरारत करते थे और मुस्कुरा देते थे कान्हा 

तुम मक्खन चुराते थे और मटकी फोड़ते थे कान्हा 

पर तुम्हारी मुस्कुराहट सबको रिझाती थी कान्हा।


जय कान्हा कुन्जबिहारी की  

अजित सम्बोधि 

Saturday, July 13, 2024

क़दमबोसी की चाहत कबसे कर रहा हूँ

मालिक तेरा फ़ज़ल है, जिससे मैं जी रहा हूँ 

बख़्शा है तूने जो कुछ, उसीसे मैं  जी रहा हूँ 
मुझमें कहाँ थी हिकमत, तुझ को पा सकूँ मैं
तेरा ही करम तो है ये , मैं  उसी से जी रहा हूँ।

जब से  सम्हाला  होश , मैं चलता  जा रहा हूँ 
मुश्किलों के दरीचों के पार , बढ़ता जा रहा हूँ 
ज़िन्दगानी  रहगुज़र, दम ब दम बनती  रही है  
तेरे क़दमों की आहट मैं , हरदम सुनता रहा हूँ।

मुझको तेरी ही चाहत , अरसे से  कह रहा हूँ 
जो कुछ भी है वो तेरा , तुझसे  ही पा  रहा हूँ 
नज़रे इनायत का तेरी , हूँ  मोहताज  हर पल 
क़दमबोसी की चाहत मैं , कबसे कर  रहा हूँ।

ये ना समझ लेना कि , मैं  बहाना बना रहा हूँ 
तुझको लुभाने को कोई, जाजम बिछा रहा हूँ 
मेरी ग़ैरत को न इतना, कम करके तू आँकना
मैं हार करके सब कुछ , तेरी दुआ कर रहा हूँ।

क़दमबोसी=क़दम चूमना। हिकमत=योग्यता।
करम=कृपा।रहगुज़र=राह। दम ब दम=पल पल।
ग़ैरत=ख़ुद्दारी। क़दमबोस=क़दम चूमने वाला।

क़दमबोस
अजित सम्बोधि।

Saturday, June 1, 2024

नज़रों से पर नज़र न आए ।

बातें करने फिर फिर आए 
नज़रों से पर नज़र न आए 
शाम हुईँ सूनी हें जबसे 
ढलता सूरज रुक ना पाए।

कभी  दूर  से  पास  बुलाए
कभी यूँ ही फ़िर रूँठ के जाए, समझ न आए 
उलझी उलझी  इन  राहों में
दिल घबराए, पार न पाए, निकल न पाए।
बातें करने फिर फिर आए 
नज़रों से पर नज़र न आए ।

मुझे कोई क्यों, यूँ भरमाए 
धूमिल सी परछाईं बनके, अपने ही सपने बन आए
मन   के   अंधेरे , शाम  सबेरे
भूली यादें लेकर आए, भोला मन फिर फिर चकराए।
बातें करने फिर फिर आए 
नज़रों से पर नज़र न आए ।

ख़्वाब बने हैं शाम के साये
दर्द   भरे   बादल   घहराये, कैसे छाए, मन को डराये
सब कुछ  तो  है रीता  रीता 
मन बहलाने आँसू आए, लौट लौट के फिर फिर आए।
बातें करने फिर फिर आए
नज़रों से पर नज़र न आए ।

दिल के भेद न हर कोई जाने
गहरे उतरे सो ही जाने, सूने को सूना पहिचाने
खोई खोई सी ये आँखें, भारी भारी सी ये साँसें 
हर कोई इनको पढ़ नहीं पाए, समझाने से समझ न पाए।
बातें करने फिर फिर आए 
नज़रों से पर नज़र न आए।

ओम शान्ति:
अजित सम्बोधि।