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Saturday, August 16, 2025

कान्हा से कुछ सवालात

 जन्माष्टमी के सुअवसर पर सभी कों शुभ कामनाएँ

 एवं प्रणाम:  अजित सम्बोधि।


भादों  की अँधेरी रात, जमुना  उफान पर

 देवकी वसुदेव क़ैद में, कंस के आदेश पर 

 क्या सोच के आधी रात को  कान्हा तुमने 

देवकी की गोद भरी, सूनी रखने को उम्र भर?


 तुमने जो अजीब ओ ग़रीबf दुनिया रची है 

क्या आज तक किसी के समझ में आई है?

  क्या इसलिए  कि कोई सवाल न पूछ ले 

तुमने पर्दे के पीछे  अपनी जगह बना ई है?

 

तुम्हारी कायनात का आग़ाज़ ओ अंजाम है?

मेरा  मन्तव्य है कि इसका कोई ओर-छोर है?

 माना कि  इन्तिहाई उम्दा और  करिश्माई है 

 मगर क्या ये अनन्य सवालों के घेरे में नहीं है?

 

तुमने हमको बनाया है, हम तुम्हारी औलाद हैं 

 हम तुम्हारी ईजाद हैं, फ़िर क्यों हम नाशाद हैं?

 क्या हमारे दिल नहीं है,  कोई   हम फ़ौलाद हैं ?

 तुम मिलते नहीं कैसे बतायें जो हमारी मुराद हैं?


तुम जब यहाँ आये थे तो, एक इन्सान बन के आये 

 मिलन जुदाई देखीं, गालियाँ खाईं, रणछोड़ कहाये 

मगर तुम्हारी पहिचान  तुम्हारी चिर मुस्कान ही  रही 

क्यों निभा न पा रहे हम सूत्रों को जो गीता में गिनाये?


अजीब ओ ग़रीब = रहस्यमय।कायनात = सृष्टि। 

आग़ाज़ ओ अंजाम = सीमा।इन्तिहाई = बेहद।

 ईजाद = आविष्कार।नाशाद = दुखी।फ़ौलाद = लोहा।

मुराद= अभिलाषा। मुरीद = चेला।

 

तुम्हारा  मुरीद 

 अजित सम्बोधि 

Saturday, August 9, 2025

राखी का बन्धन

 ये बन्धन बड़ा  अनूठा, इसको कहते  रक्षा बन्धन 

राखी बनी कबीर की साखी, सजाने को ये बन्धन।


इक धागा बन जाता कंगन 

रिश्तों में भर देता स्पन्दन 

बहना को अपने भैय्या में  

मिल जाते हें अदितिनन्दन!


 कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं 

जो रब के बनाए होते हैं 

 वे बेहद अनुपम होते हैं 

मधुरम से मधुरम होते हैं।


भाई और बहिना का  नाता 

एक फर्राता हुलसाता नाता 

सावन की पूनम के दिन वो 

रक्षाबन्धन  बन  कर  आता।


हर बहना अपने भैय्या को राखी की याद दिलाती है 

हाथ में धागा बाँधती है, माथे पर तिलक लगाती  है।


 साखी = साक्षी, गवाह।


सबको रक्षा बन्धन की बधाई 

अजित सम्बोधि 

Thursday, August 7, 2025

अब का सावन

 अब का सावन बड़ा ही सुहाना रहा 

नाख़ुश होने का न कोई बहाना रहा 

बहारों  की  झड़ियाँ  बरसती  रहीं 

 अब्र- ए- बाराँ  मेरा  सिरहाना  रहा।


मैं हँसता  रहा  और वो  हँसाता  रहा 

वो बरसता रहा मैं खिलखिलाता रहा 

 मुसलसल  फुहारों से  नहलाता  रहा 

मैं नहाता रहा  गुनगुन  गुनगुनाता  रहा।


कभी दम साधे मुझको बहकाता रहा 

कभी कड़क कर मुझको डराता रहा 

 कभी बिजली बनके चौंधियाता रहा 

मैं दम साधे मन ही मन मनाता रहा।


 तुम्हारी याद मुझको सताती रहेगी 

तुम्हारी कमी मुझको खलती रहेगी 

रुआँसे  मन से तुम्हें  बिदा कर रहा 

तुम्हारी याद में आँखें बरसती रहेंगी।


 अब्र- ए- बाराँ = बारिश से भरी घटायें।

 मुसलसल = लगातार।


  तुम्हारा दिलबर 

अजित सम्बोधि 

 

Friday, August 1, 2025

सावन में साँवरिया

जब जब बरसे बादरिया 

मैं बन जाता बावरिया 

जब जब सुनता बाँसुरिया 

मैं याद करूँ साँवरिया 

  सावन मुझे भिगोता है साँवरिया मुझे सँजोता है 

 जोड़ा सावन साँवरिया का मन में प्यार पिरोता है।


साँवरिया ऐसा बाजीगर 

दिन में बन जाता जादूगर 

रात में जब मैं सोता हूँ 

तब जाके होता उजागर 

दिन में बादल बन के बरसता रात को रोशन होके बरसता 

 ऐसी बनी जुगलबंदी ये, कोई देख  न  पाया मुझे तरसता।


 ये जो सावन की फुहारें हैं 

क्या ये प्यार की छिटकारें हैं?

 साँवरिया की बंदनवारें हैं?

 या  मुहब्बत की जागीरें हैं?

 मैं बताऊँ तुम्हें ऐ मेरे दुलारे, ये इस बंजारे की मनुहारें हैं 

 सुन साँवले साँवरिया, ये एक तड़पते दिल की पुकारें हैं।


क़दीम मुरीद 

अजित सम्बोधि 

 

Wednesday, July 30, 2025

अरावली की वादियाँ

 ये अरावली की वादियाँ हैं 

 यहाँ वीथियाँ हैं कुंजगलियाँ हैं 

लहराती पगडंडियाँ हैं 

भूलभुलइयाँ नहीं है।

 

ऊँची ऊँची चोटियाँ हैं 

भेड़ें हैं भेड़वालियाँ हैं 

छोटी छोटी मींगड़ियाँ हैं 

पेस्टिसाइड वाली नहीं हैं।


 ग़ुलज़मीं है रानाइयाँ हैं 

 कलियाँ हैं फुलझड़ियाँ हैं 

 अन्ना हैं पॉलीअन्ना हैं 

दोनों की गलबहियाँ हैं।


 ये सावन की फुहारें हैं 

कुछ मचलती बहारें हैं 

मेरी नज़रों के नज़ारे हैं 

पसन्द आयें तो सबके हैं।


 ग़ुलज़मीं = फूलों की क्यारियाँ।

रानाइयाँ = सजावटें।अन्ना = शालीनता।

 पॉलीअन्ना = ख़ुशमिजाज़  वाली।


 ओम शान्ति:

अजित सम्बोधि 

Sunday, July 20, 2025

अरावली की वादियों में फ़िर से दस्तक

पहले भी यहाँ आया, कुछ  ख़्वाब यहीं  भूल  गया 

आज उनसे रूबरू होने  को, मैं  फ़िर  से  आ गया।

 

ये कचनार का पेड़, मेरा गवाह 

ये वहीं खड़ा है, रस्ते पे निगाह 

  मानता है मुझको  अपना ही 

इसीलिए  रखता है  मेरी चाह।


ये वादियाँ हैं या कोई साज़ है 

इन वादियों में मेरी आवाज़ है 

 मैं प्यार से आवाज़ लगाता हूँ 

ये  करने  लगती  रियाज़  है।


वो आसमान देखिए क्या कर रहा 

मुझे अपने आगोश में लिए ले रहा 

इतना प्यार तो किसी ने नहीं दिया 

जितना  ये  बयाबान मुझे   दे रहा।


आज क्या आगया मैं यहाँ फ़िर से 

 लगता है सारे सावन लौटे फ़िर से 

 सोचिए ज़िन्दगी में ग़र सावन न हो 

क्या मतलब है जनम  लूँ मैं फ़िर से।


मैं बरबख़्त हूँ मेरा ख़ैरख़्वाह मुझे लेके यहाँ आ गया 

रब का ममनून हूँ वो मेरा हमदम बनके यहाँ आ गया।


 रूबरू = आमने सामने।रियाज़ = practice. 

आग़ोश = embrace. बयाबान = जंगल। 

बरबख्त = fortunate.ख़ैरख़्वाह = भला चाहने वाला।

 रब = ईश्वर।ममनून = thankful. हमदम =दोस्त।


ओम शान्ति: 

अजित सम्बोधि 

Friday, July 18, 2025

मनभावन है ये सावन

सावन  को दिल दे दिया, सावन ने दिल दे दिया 

 मौका मुहब्बत का हमें, फ़िर मौसम ने दे दिया।


ये सौदा बुरा नहीं है 

कोई ख़फ़ा नहीं है 

बेहद तपिश थी गो 

नतीजा बुरा नहीं है 

ये राज़े मुहब्बत है आ आ के बचा दिया 

 दस्तूरे फ़लसफ़ा ने किरदार निभा दिया।


 बैठा था कब से ग़मगीन  

अश्कों के  सागर में लीन 

 बारिश की झड़ी लगाकर 

  आब ए चश्म उठा लिया 

मनभावन है ये सावन, मैंने दीदार कर लिया 

जो तसव्वुर में था  मेरे, रूबरू  कर  लिया।


 ये सावन बड़ा आला 

जैसे पूरा भरा प्याला 

गरमी से  देता राहत 

जैसे भूखे को निवाला 

बादल को मुहब्बत है, ज़मीं को भिगो गया 

सावन को मुहब्बत है, फ़िर मिलने आ गया।

  

गो = यद्यपि। किरदार = role. आब ए चश्म = आँसू।

  दीदार = दर्शन। तसव्वुर = कल्पना। रूबरू = सामने।


 ओम शान्ति:

अजित सम्बोधि