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Saturday, January 2, 2021

मौलुकपुत्त और बुद्ध

मौलुकपुत्त एक अभूतपूर्व जिज्ञासु था
बुद्ध के पास ग्यारह प्रश्न लेके गया था।
तुम्हारे हरएक प्रश्न का उत्तर मैं दे दूंगा
यदि एक वचन दे दो, बुद्ध ने कहा था।

मौलुकपुत्त ने कहा था, वह कटिबद्ध है
आप कृपया बताएं वचन जो भी देना है।
बुद्ध ने कहा था उसे, पुनर्विचार कर लो
ताकि फ़िर न कहना पड़े, संभव नहीं है।

भन्ते ! मौलुकपुत्त एक क्षत्रिय का पुत्र है
वचन देकर न निभाना निपट असंगत है।
मौलुकपुत्त ने इस तरह बुद्ध से कहा था
पुनः पूछा बताएं, मुझे क्या वचन देना है? 

बुद्ध ने कहा था,दो वर्ष तक प्रतीक्षा करो
यहां मेरे पास ही शान्त बन कर रहते रहो।
दो वर्ष पश्चात अपने सभी प्रश्न पूछ लेना
मैं अवश्य उत्तर दूंगा,  निश्चिंत होकर रहो।

क्षात्र धर्म के हेतु प्राणोत्सर्ग स्वाभाविक है
वह एक क्षण में होजाता है, अतः सुगम है।
परन्तु उत्तर जानने के लिए इतनी प्रतीक्षा ?
पर वह वचनबद्ध था, बोला वह सन्नद्ध है।

एक प्रातः जब दो वर्ष का समय बीत गया
बुद्ध ने कहा था, प्रश्न पूछो, समय आ गया।
मौलुकपुत्त बुद्ध के चरणों पर गिर पड़ा था
आपका उपक्रत हूं, बिना मांगे सब दे दिया।

प्रश्न तो चलायमान मन में ही उठा करते हैं
जब तक विचार श्रृंखलाएं है, उठते रहते हैं।
एक दिन आता है जब विचार थम जाते हैं
शून्यता के भाव में प्रश्न गिरते चले जाते हैं।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।





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