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Tuesday, April 29, 2025

रोशन करता चलूँ!

 मैं अँधेरों को  रोशन करता चलूँ 

मुश्किलों को हरदम थकाता चलूँ 

 ज़िद है मेरी कि मैं सम्हल के चलूँ 

ख़ुद ब ख़ुद ख़ुदको, मिटाता  चलूँ!


 सितारों से  कदम  मिलाता चलूँ 

 शाख़ को गुलों  से सजाता  चलूँ 

हर  शै  को  हरदम  निभाता  चलूँ 

हर आह कों इबादत  बनाता चलूँ!


 ख्वाबों को ख्वाबों से जुटाता चलूँ 

 ठोकरों को लबों से पुचकारता चलूँ 

इसको किस्मत कहूँ या तेरी क़ुर्बत 

तेरे ही सपनों से सपने  बुनता चलूँ!


 खुदको = अहं को।  गुल = फूल।

शै = चीज़, स्थिति। इबादत = पूजा।

लबों = होठों। क़ुर्बत = निकटता।


 ओम शान्ति:

अजित सम्बोधि 

Saturday, April 26, 2025

welcome to the rising sun!

Ever  welcomed  the rising  sun?

It’s not only early morning  fun!

It’s an extravaganza, to observe 

Fear, stress & anger, on the run! 


When the  sun pours  its treasure

Into you, in such  great  measure!

Every pilferer receives a  big jolt 

Rushes pell-mell, quitting leisure!


Your body gleams, sterling  pure!

Full of  all the  things that assure!

Body attains to highest vibrations!

Love compassion gratitude endure!


Om Shantih 

ajit sambodhi 

Monday, April 21, 2025

God Nods!

          GOD  NODS

You breathe in  when  he nods

You breathe out when he nods

You go to sleep when you will 

But he doesn’t  forget his nods!


Raise your hand to drink water 

Or to wipe  when you  perspire 

Don’t forget,  without his  nods

Nothing  is  going   to  transpire!


Things  happen  when  he   nods

Things  happen  when  god  nods

Never  forget  to  offer  gratitude 

You are alive because of his nods!


Om Shantih 

ajit sambodhi 

Saturday, April 12, 2025

मुझे ऐसी रूखसती चाहिए

 मेरे  जाने  पे  न  मातम  मनाना 

कुदरत का दस्तूर है आना जाना।

ये हक़ीक़त है इसे भूल मत जाना 

जाये बिना फ़िर कैसे होगा आना?


 मेरा  मज़हब  है  गले  से  लगाना 

 मेरी  फ़ितरत  है  तस्लीम  करना।

मैं बादल हूँ, मेरा निशाँ  मत ढूँढना 

हो  सके  तो  बस  ख़ामोश  रहना।


मेरे  जाने  पे   न   मरसिया   गाना 

 न  अपनों   को  नाहक  में रुलाना।

 ये   कारवाँ   यूँ  ही  चलता  रहेगा 

न   गुज़रे  ज़माने  पे  आँसू   बहाना।


मेरे  जाने  को   मुक़द्दस  ही   रखना 

 मुझे   हुज्जूम   से   दूर   ही   रखना।

मैं    भीड़    का    इन्सान    नहीं    हूँ 

चुनिन्दा    नज़रों   से  रुख़सत   करना।


 मेरी  राख   को   न  दरिया  में  बहाना 

बहर ए नूर में नहाता हूँ  ये  याद  रखना।

 ये  जिस्म  क्या  है?  ख़ाक  ही  तो  है? 

जब  ख़ाक  है तो  सुपुर्द ए ख़ाक करना।


 सफ़र   पे  निकलना   है,  तय्यार  हूँ  मैं 

वक़्त  की  पेशगोई  को,  पहचानता हूँ मैं।

 सभी  को  गुज़रना  है   इस  रहगुज़र  से 

है  ये कुदरत  का  दस्तूर,  वाक़िफ़  हूँ  मैं।


 सभी   को   अलविदा   कह   रहा  हूँ   मैं 

तहे दिल से शुकराना  अता कर  रहा हूँ मैं 

ये   ज़िन्दगानी   तो   नेमत   है    रब   की 

रब   को  भी   तस्लीम   कर   रहा   हूँ  मैं।


 फ़ितरत = प्रकृति। तस्लीम = प्रणाम।

मरसिया = शोक गीत। मुक़द्दस = पूजा।

हुज्जूम = भीड़। चुनिन्दा = चुनी हुई।

बहर ए नूर = प्रकाश का समुद्र। गंगा में बहाने 

जैसे कर्म कांड मत करना।रोज़ नहाता हूँ गंगा में।

सुपुर्द ए ख़ाक = मेरी राख़ तुलसी में डाल देना।

पेशगोई = क्या होना है उसे पहचान लेना।

रहगुज़र = रास्ता। अता = देना। नेमत = gift.

ये आख़िरी ख्वाहिशें हैं जो पूरी की जाती हैं।


ओम शान्ति:

अजित सम्बोधि।