Popular Posts

Total Pageviews

Friday, September 26, 2025

परिन्दा बना दे।

 परिंदों के लिए तो नहीं कोई बंदिश 
उड़ जाते हैं जहाँ की होती ख़्वाहिश 
कोई सरहद उनको  रोक नहीं पाती 
कोई मज़हब  बना  न पाता  दबिश।

 कैसे उड़ते हैं पंख  फैला कर 
कैसे ख़ुश होते हैं  गीत गाकर 
सारा आसमाँ  बना  ख़ैरख़्वाह 
सब चहकते हैं उनको देख कर।

कितनी ख़ुशनुमा है उनकी ज़िंदगी 
हर दरख़्त करता है उनकी बन्दिगी 
जहाँ चाहते हैं  बना लेते हैं नशेमन 
हर मोड़ पे पलकें बिछाती ज़िन्दगी।

मैं तो थक गया हूँ इस ज़िन्दगी से मालिक 
इन नफ़रतों से, इन दरिंदगीयों से  मालिक 
क्या हो गया है तेरे  इन्सान को ऐ मालिक 
अच्छा हो मुझे  भी परिंदा बना दे  मालिक।

ख़ैरख़्वाह = भला चाहने वाला।नशेमन = बसेरा।

ओम शान्ति:
अजित सम्बोधि 

Tuesday, September 23, 2025

Ever thought?

 Ever thought why people keep fighting 

Even in sleep they don’t forget fighting!


Be it any religion, you see them fighting 

Be it any nation, you find them fighting!


Every nation spends 80% gdp on fighting 

Asks people to live on 20% sans fighting!


Aristotle wanted a philosopher to be a ruler

But Harishchandr only was such a one ruler!


We have reached a  cul de sac,  haven’t we?

Let’s look inside ourselves,  shouldn’t  we?


A wise guy pointed out that ‘I’ is an illness

It creates 80K thoughts/day in the process!


Let’s swap ‘I’ with ‘We’ that denotes wellness

Each thought will be for ‘We’for real progress!


Shouldn’t we try it, though it looks trifling?

Let’s hope it ends, endless rage for fighting!


sans = without. cul de sac = dead end of a street 

in the form of a circle, for turning back.


Om Shantih

ajit sambodhi 


Thursday, September 18, 2025

बस एक मुस्कान चाहिये

वो पूछने लगे आपको क्या चाहिए 

मैंने पूछा किस बाबत क्या चाहिए?

कहने लगे कि ख़ुश  रहने  के लिए 

मैंने कहा सिर्फ़ एक मुस्कान चाहिए।


 तारीकी मिटाने को भला क्या चाहिए 

बस एक  जलता  हुआ  दिया  चाहिए 

 दिल की मायूसियत मिटाने के लिये 

बस  एक  नन्ही  सी  मुस्कान  चाहिए।


ख़ुश होने के लिए न बड़ी दौलत चाहिए 

और ना ही बहुत सी शोहरत ही चाहिए 

 दिल की ख़ुशी के लिए बस नक़द-दम 

 तहे दिल से निकली एक मुस्कान चाहिए!

 

तारीकी = अन्धकार। मायूसियत = उदासी।

 नक़द-दम = सिर्फ़।तहे दिल = अन्तरतम।


ओम शान्ति:

अजित सम्बोधि 

Friday, September 5, 2025

अन्दाज़ ए इबादत।

 तुम जो कहो नग़मा-ए-उल्फ़त सुनाऊँ?

कुछ    माज़ी    सर…गोशी    दुहराऊँ?

तुम्हारे  सरगम   की  ख़ातिर   दरकार 

दिल  में  छिपा   मेरा  बरबत  बजाऊँ?


 दिल की परतों में दबा वो   भेद सुनाऊँ ?

क़ैफ़ियत गुमनाम आज उजागर कराऊँ?

जुबाँ पे ला न पाया जिसे मैं अभी तक 

वो अन्दाज़ ए बयाँ  भी तुमको  सुनाऊँ?


एक  तुम्हारी ख़ातिर ही जिन्दा हूँ,  समझे?

 तुम्हारे  सिवा  कुछ  न  चाहिए ,  समझे?

और बता दूँ  एक  राज़  की बात  तुमको  

 हररोज़ मरता हूँ, सो थक गया हूँ, समझे?

 

अन्दाज़ ए इबादत = बन्दगी करने का ढंग।

नग़मा ए उल्फ़त = प्यार का गीत।माज़ी = पुरानी।

सर गोशी = कानाफूसी।बरबत = एक वाद्य यन्त्र।

क़ैफ़ियत = पहचान।अन्दाज़ ए बयाँ = बोलने का ढंग।


ओम शान्ति:

अजित सम्बोधि।