Popular Posts

Total Pageviews

65175

Saturday, December 12, 2020

क़ाबिले ग़ौर?

सुना है, अकबर बादशाह तालीमयाफ़्ता नहीं थे
लोग कहते हैं कि इसलिए वो अच्छे हुक्मरान थे
उन्होंने बड़े क़ाबिल लोगों को नौकरी दे रखी थी
ऐसे नौ इल्मदाँ थे जिन्हें वो नौरत्न कहा करते थे।

ये जो रिवायत है क़दीम ज़माने से चली आ रही है
कि नाख़्वाँदगी शाइश्तगी को नौकर रखती रही है
इल्मदाँ इस बाबत बख़ूबी फ़क्र ज़ाहिर करते रहे हैं
कि रअय्यत हुक्मरानों की हिमायत  करती रही है।

आज भी नामचीन शाइश्ताँ इस बाबत ख़ुश होते हैं
कि हुक्मरान उन्हें मशविरा करने को बुलावा देते हैं
हुक्मरान की क़ैफ़ियत है, हुक्म की तामील कराना
वैसे इस बाबत भी क़ाबिल रज़ाकार बुलवा लेते हैं।

क्या वाक़ई में हुक्मरान और हुकूमत की ज़रूरत है?
क्या वाक़ई सबेरा होने के लिए हुक्म की ज़रूरत है?
जब कि हम अकबर से अक्सरियत तक आ पहुँचे हैं
 क्या हमें इबादत और इत्मीनान की नहीं ज़रूरत है?

क़दीम= पुराने।‌‌ नाख़्वाँदगी = अशिक्षा। 
शाइश्तगी= शिक्षा। क़ैफ़ियत= पहिचान। 
रज़ाकार= स्वयंसेवक।अक्सरियत= बहुमत। 

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

No comments:

Post a Comment