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Monday, June 27, 2022

दौलत ए मुहब्बत

कभी मीरा बिलखती थी, कभी कबिरा बिलखता था
कभी रबिया बिलखती थी, कभी रूमी बिलखता था
ये   दौलत   मुहब्बत   की   बड़ी   नायाब   होती  है 
सुदामा  के   ज़ख़्म  धो  धो  कन्हैया   बिलखता  था ।

कभी  धरती  तड़पती  है , कभी  बादल  तड़पता   है 
कभी  शबनम  तड़पती है, कभी  महताब  तड़पता है 
मुहब्बत  को  वही  जाने , जिस्ने  तड़पन को है जाना 
मुहब्बत  वो  क्या समझेगा , बिना तड़पन तड़पता  है ।

मुहब्बत   है    हक़ीक़ी    तो    एहसास    होता    है 
फ़ासला चाहे जितना  हो , मगर   एहसास  होता   है 
किसी की आँख का मोती न खो जाए यूँ ही ढल कर
नमनाक   आँखों   का   मुहासिब,  एहसास  होता  है ।

मुहब्बत  नाम  लेने   से ही ,  सावन   सा  बरसता  है 
अचानक     से     कहीं    जैसे    संतूर    बजता    है 
दिल   की   बात   ने   जैसे    नई   पहचान   है   पाई
रब    के   पास    होने     का    इसरार    बनता    है ।

भँवर  ऐसे  ही   तो   कोई , गुनगुनाया   नहीं   करता
पपीहा  यूँ  ही  तो  फ़िर  फ़िर , पुकारा  नहीं   करता 
कोई   तो   याद   ऐसी  है , जो  साँसों  में   रहती  है 
रफ़ाक़त  के  बिना  तो  गीत , निकला   नहीं   करता।

शबनम= ओस। महताब = चाँद। हक़ीक़ी = असली ।
नमनाक = ज़ियादा नम। मुहासिब = ख़याल रखने वाला ।              
इसरार= जिद करना। रफ़ाक़त= नज़दीकी ।

ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।

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