कभी रबिया बिलखती थी, कभी रूमी बिलखता था
ये दौलत मुहब्बत की बड़ी नायाब होती है
सुदामा के ज़ख़्म धो धो कन्हैया बिलखता था ।
कभी धरती तड़पती है , कभी बादल तड़पता है
कभी शबनम तड़पती है, कभी महताब तड़पता है
मुहब्बत को वही जाने , जिस्ने तड़पन को है जाना
मुहब्बत वो क्या समझेगा , बिना तड़पन तड़पता है ।
मुहब्बत है हक़ीक़ी तो एहसास होता है
फ़ासला चाहे जितना हो , मगर एहसास होता है
किसी की आँख का मोती न खो जाए यूँ ही ढल कर
नमनाक आँखों का मुहासिब, एहसास होता है ।
मुहब्बत नाम लेने से ही , सावन सा बरसता है
अचानक से कहीं जैसे संतूर बजता है
दिल की बात ने जैसे नई पहचान है पाई
रब के पास होने का इसरार बनता है ।
भँवर ऐसे ही तो कोई , गुनगुनाया नहीं करता
पपीहा यूँ ही तो फ़िर फ़िर , पुकारा नहीं करता
कोई तो याद ऐसी है , जो साँसों में रहती है
रफ़ाक़त के बिना तो गीत , निकला नहीं करता।
शबनम= ओस। महताब = चाँद। हक़ीक़ी = असली ।
नमनाक = ज़ियादा नम। मुहासिब = ख़याल रखने वाला ।
इसरार= जिद करना। रफ़ाक़त= नज़दीकी ।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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