Monday, September 26, 2022
come, come, september!
Sunday, September 25, 2022
happy daughters day!
Sunday, September 18, 2022
respect Nature honestly.
Monday, September 12, 2022
मिलना चाहता हूँ
सारी दुनियाँ से मिल लिया, ख़ुद से मिलना चाहता हूँ
ढूँढता रहा जिसको हर दम, उसी से मिलना चाहता हूँ ।
तवारीख़ तो नगर वधू है, फ़ातेह की संगिनी जो ठहरी
जिस चेहरे पे दर्ज हो इबारत, उससे मिलना चाहता हूँ ।
लगता है जैसे ज़िन्दगी फ़ज़ीहत ए फ़ज़ूल में चली गई
जिसकी क़ुर्बत में वज़ाहत हो, उससे मिलना चाहता हूँ ।
क़िस्सा वही, किस्सा गो भी वही, इसमें ख़ास क्या है
बयान ए रसूल है जिसका , उसको मिलना चाहता हूँ ।
सबक़ सिखाने वाले मुझको, अक्सर ही मिला करते हें
जो गया वक़्त लाना सिखा दे, उससे मिलना चाहता हूँ ।
ज़िन्दगी मेहरबान है , जो नहीं माँगा था वो भी दे दिया
मुझे मेरी मुस्कुराहट दिला दे , उससे मिलना चाहता हूँ ।
मिलने पर सभी मुस्कुराते हें , हमें भी मालूम है ये बात
मुस्कुराहट हमनवाई से सजाए, उससे मिलना चाहता हूँ ।
रास्तों में ही नहीं , दिलों में भी संग मिल जाया करते हें
जो उस संग को मोम बना दे , उससे मिलना चाहता हूँ ।
मन्दिर बहुत दिखते हें, नामदार भी और शानदार भी
दीप जो जलाए सूने मंदिर में , उससे मिलना चाहता हूँ ।
चाहत दोनो तरफ़ है , हमको मालूम है बख़ूबी ये बात
मगर पहिले शुरुआत करे , मैं उससे मिलना चाहता हूँ ।
हर तरफ़ नफ़रत के काँटे चुभते, जीना मुहाल हो गया
इन काँटों पर फूल खिला दे , उससे मिलना चाहता हूँ ।
धड़कन हर दिल में क़ाबिज़ है , मगर जो समझ पाए
धड़कन का धड़कन से रब्त, उससे मिलना चाहता हूँ ।
जब कोई बोलता है तो, मैं मुँह नहीं आँखें देखता हूँ
जिन आँखों में पज़ीराई हो , उनसे मिलना चाहता हूँ ।
नफ़रत तो इतनी देख ली , कि सारे ख़्वाब बिखर गए
कोई आजाए बरादर बनकर, उससे मिलना चाहता हूँ ।
ज़िन्दगी बेहाल हो गई , किरदार देख देख दुश्मनी के
जो दुश्मन हो दुश्मनी का, उससे मिलना चाहता हूँ ।
वो रूँठा बैठा है वहाँ , मैं उसका वादा लेकर बैठा यहाँ
उस सिरफ़िरे से कोई कह दे , उससे मिलना चाहता हूँ ।
ख़ामोश है समन्दर भी, वादियाँ भी , और वो ख़ामोशी
मेरी रूह सुनती है , लिहाज़ा उससे मिलना चाहता हूँ ।
फातेह= विजेता। क़ुर्बत= नज़दीकी। वज़ाहत= भव्यता।
किस्सा गो= story teller. बयान ए रसूल= word of prophet.
हमनवाई= हमख़्याली। संग= पत्थर। मुहाल= असम्भव।
रब्त= मेलजोल। पज़ीराई=अपनापन।
ओम् शान्तिः
अजित सम्बोधि।