सूरज की सुनहरी किरणों के, सरमाये छाये हैं
परिंदे उड़े जा रहे हैं, ख़ूब मुस्तैदी से उड़ रहे हैं
घर पर इंतिज़ार हो रहा है , मुश्ताक़ी बनाये हैं।
ये घर भी क्या चीज़ है, मुस्तक़िल है शादाब है
नायाब है, सेहतयाब है , एकदम से अहबाब है
चाहे बियाबान हो, कारवाँ हो, या आसमान हो
दिल उसी में रहता है , वहीं पर तो सुरख़ाब है।
सब कुछ पाकर भी लगता है, कुछ पाया नहीं
मन में लगता है कि कुछ और है जो मिला नहीं
ज़िन्दगी बीत जाती है उस घर को तलाशने में
मुक़म्मल सुकून बख़्शता है, मगर मिलता नहीं।
हाँ, वो घर जहाँ हर वक्त नूरुन अलानूर रहता है
नूरे मुजल्ला, नूरे मुजस्सम वा नूरे शम्स रहता है
वही घर है जहाँ जाने को दिल तरसता रहता है
वही घर है, फ़ुरोज़ाँ है, वहीं दिलफ़ुरोज़ रहता है।
मक़ाम ए सुकून=चैन का पड़ाव। सरमाये=हितकारी।
मुश्ताक़ी=उत्कंठा। शादाब=ख़ुशनुमा। अहबाब=मित्र।
सुरख़ाब=चकवा। नूरुन अलानूर=नूर-नूर।
नूरे मुजल्ला=बिखरा नूर। नूरे मुजस्सम=आपादमस्तक नूर।
नूरे शम्स=नूर का सूरज। फ़ुरोज़ाँ=प्रकाशमान।
दिलफ़ुरोज़=दिल का प्रकाश।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
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