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Friday, August 1, 2025

सावन में साँवरिया

जब जब बरसे बादरिया 

मैं बन जाता बावरिया 

जब जब सुनता बाँसुरिया 

मैं याद करूँ साँवरिया 

  सावन मुझे भिगोता है साँवरिया मुझे सँजोता है 

 जोड़ा सावन साँवरिया का मन में प्यार पिरोता है।


साँवरिया ऐसा बाजीगर 

दिन में बन जाता जादूगर 

रात में जब मैं सोता हूँ 

तब जाके होता उजागर 

दिन में बादल बन के बरसता रात को रोशन होके बरसता 

 ऐसी बनी जुगलबंदी ये  कोई देख  न  पाया मुझे तरसता।


 ये जो सावन की फुहारें हैं 

क्या ये प्यार के छिटकारे हैं?

 साँवरिया की बंदनवारें हैं?

 या  मुहब्बत की जागीरें हैं?

 मैं बताऊँ  तुम्हें ऐ मेरे दुलारे ये इस बंजारे की मनुहारें हैं 

 सुन साँवले साँवरिया, ये एक तड़पते दिल की पुकारें हैं।


क़दीम मुरीद 

अजित सम्बोधि