Wednesday, August 27, 2025
prayers
Saturday, August 16, 2025
कान्हा से कुछ सवालात
जन्माष्टमी के सुअवसर पर सभी कों शुभ कामनाएँ
एवं प्रणाम: अजित सम्बोधि।
भादों की अँधेरी रात, जमुना उफान पर
देवकी वसुदेव क़ैद में, कंस के आदेश पर
क्या सोच के आधी रात को कान्हा तुमने
देवकी की गोद भरी, सूनी रखने को उम्र भर?
तुमने जो अजीब ओ ग़रीबf दुनिया रची है
क्या आज तक किसी के समझ में आई है?
क्या इसलिए कि कोई सवाल न पूछ ले
तुमने पर्दे के पीछे अपनी जगह बना ई है?
तुम्हारी कायनात का आग़ाज़ ओ अंजाम है?
मेरा मन्तव्य है कि इसका कोई ओर-छोर है?
माना कि इन्तिहाई उम्दा और करिश्माई है
मगर क्या ये अनन्य सवालों के घेरे में नहीं है?
तुमने हमको बनाया है, हम तुम्हारी औलाद हैं
हम तुम्हारी ईजाद हैं, फ़िर क्यों हम नाशाद हैं?
क्या हमारे दिल नहीं है, कोई हम फ़ौलाद हैं ?
तुम मिलते नहीं कैसे बतायें जो हमारी मुराद हैं?
तुम जब यहाँ आये थे तो, एक इन्सान बन के आये
मिलन जुदाई देखीं, गालियाँ खाईं, रणछोड़ कहाये
मगर तुम्हारी पहिचान तुम्हारी चिर मुस्कान ही रही
क्यों निभा न पा रहे हम सूत्रों को जो गीता में गिनाये?
अजीब ओ ग़रीब = रहस्यमय।कायनात = सृष्टि।
आग़ाज़ ओ अंजाम = सीमा।इन्तिहाई = बेहद।
ईजाद = आविष्कार।नाशाद = दुखी।फ़ौलाद = लोहा।
मुराद= अभिलाषा। मुरीद = चेला।
तुम्हारा मुरीद
अजित सम्बोधि
Saturday, August 9, 2025
राखी का बन्धन
ये बन्धन बड़ा अनूठा, इसको कहते रक्षा बन्धन
राखी बनी कबीर की साखी, सजाने को ये बन्धन।
इक धागा बन जाता कंगन
रिश्तों में भर देता स्पन्दन
बहना को अपने भैय्या में
मिल जाते हें अदितिनन्दन!
कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं
जो रब के बनाए होते हैं
वे बेहद अनुपम होते हैं
मधुरम से मधुरम होते हैं।
भाई और बहिना का नाता
एक फर्राता हुलसाता नाता
सावन की पूनम के दिन वो
रक्षाबन्धन बन कर आता।
हर बहना अपने भैय्या को राखी की याद दिलाती है
हाथ में धागा बाँधती है, माथे पर तिलक लगाती है।
साखी = साक्षी, गवाह।
सबको रक्षा बन्धन की बधाई
अजित सम्बोधि
Thursday, August 7, 2025
अब का सावन
अब का सावन बड़ा ही सुहाना रहा
नाख़ुश होने का न कोई बहाना रहा
बहारों की झड़ियाँ बरसती रहीं
अब्र- ए- बाराँ मेरा सिरहाना रहा।
मैं हँसता रहा और वो हँसाता रहा
वो बरसता रहा मैं खिलखिलाता रहा
मुसलसल फुहारों से नहलाता रहा
मैं नहाता रहा गुनगुन गुनगुनाता रहा।
कभी दम साधे मुझको बहकाता रहा
कभी कड़क कर मुझको डराता रहा
कभी बिजली बनके चौंधियाता रहा
मैं दम साधे मन ही मन मनाता रहा।
तुम्हारी याद मुझको सताती रहेगी
तुम्हारी कमी मुझको खलती रहेगी
रुआँसे मन से तुम्हें बिदा कर रहा
तुम्हारी याद में आँखें बरसती रहेंगी।
अब्र- ए- बाराँ = बारिश से भरी घटायें।
मुसलसल = लगातार।
तुम्हारा दिलबर
अजित सम्बोधि
Friday, August 1, 2025
सावन में साँवरिया
जब जब बरसे बादरिया
मैं बन जाता बावरिया
जब जब सुनता बाँसुरिया
मैं याद करूँ साँवरिया
सावन मुझे भिगोता है साँवरिया मुझे सँजोता है
जोड़ा सावन साँवरिया का मन में प्यार पिरोता है।
साँवरिया ऐसा बाजीगर
दिन में बन जाता जादूगर
रात में जब मैं सोता हूँ
तब जाके होता उजागर
दिन में बादल बन के बरसता रात को रोशन होके बरसता
ऐसी बनी जुगलबंदी ये, कोई देख न पाया मुझे तरसता।
ये जो सावन की फुहारें हैं
क्या ये प्यार की छिटकारें हैं?
साँवरिया की बंदनवारें हैं?
या मुहब्बत की जागीरें हैं?
मैं बताऊँ तुम्हें ऐ मेरे दुलारे, ये इस बंजारे की मनुहारें हैं
सुन साँवले साँवरिया, ये एक तड़पते दिल की पुकारें हैं।
क़दीम मुरीद
अजित सम्बोधि