Friday, July 29, 2022
योगक्षेमं वहाम्यहम्।
Tuesday, July 26, 2022
निमित्त मात्रं भव सव्यसाचिन् ।
Saturday, July 23, 2022
I tell myself, learn !
Wednesday, July 20, 2022
क्या इसे भुला सकता हूँ?
Monday, July 18, 2022
बाहर vs अन्दर
Thursday, July 14, 2022
हुस्न ए समाअत
Wednesday, July 13, 2022
Who...if not HE?
Monday, July 11, 2022
look, look
A northerly breeze is brewing
As a flock of flickers is flying.
I sit enchanted on the deck
And watch the trees swaying.
I hear a thunder somewhere
It’s drawing nearer and nearer.
It may start raining , I surmise
The clouds are turning thicker.
Suddenly a streak of lightning!
A kinky dazzle perambulating!
I wonder what it thinks of me
As I sit uncovered, ruminating!
There's a power so benevolent
That makes even me, relevant.
It made me an instrument who
Would record this elfin event!
It has made each 'n' everything
Including me 'n' the lightening.
Its space holds both of us and
All else , in a bond unswerving!
Om Shantih
Ajit Sambodhi.
Friday, July 8, 2022
पलकों को अच्छे से बंद रखना।
ख़ुद से ही ख़ुद को चुरा लेना
मुझसे न कहना , भुला देना ।
अपनी मायूस निगाहों से फ़िर
मुझसे शिकायत ना करना।
इस जहाँ से अलग भी जहाँ है
रगे जाँ से क़रीबतर जहाँ है ।
तुमको करना पड़ेगा ये यकीन
निस्बत में एक और भी जहाँ है ।
चाहत से गिला मत करना
राहत को मना मत करना
सपने तो अपने हें, आया करेंगे
पलकों को अच्छे से बंद रखना ।
कुछ वक़्त गुज़र जाने देना
नज़रों को मुसल्लस में रखना
वहीं पर मिलते रहेंगे हम तुम
पलकों को अच्छे से बंद रखना।
रगे जाँ=jugular vein. क़रीबतर= अधिक क़रीब।
निस्बत = relation. मुसल्लस= triangle.
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
Tuesday, July 5, 2022
हम्द ओ सना
वो ग़म से मुझे आबाद करें
हम ग़म के सहारे जीते हें
हम दर्द के मारों को अपने
दिल में ही मुकम्मल करते हें ।
वो हवा चले चाहे बासन्ती
या फ़िर लूओं की हो रानी
हमको तो दोनों लगतीं हैं
अपनी सी जानी पहचानी ।
कई दर्द तो होते दर्द भरे
कई दर्द भी मीठे होते हैं
जो दर्द हमें दमसाज़ करें
वो दर्द सुनहरे होते हैं ।
कोई आवाज़ कभी दे देता है
यूँ ही से मगर, बाबत में नहीं
फ़िर कितना अच्छा लगता है
उसको भी पूछो, है कि नहीं?
बेपर्दा रहूँ मैं या दर पर्दा
मुझको नहीं है ग़म ए फ़र्दा
मैं हूँ ही नहीं आमिल कब से
सिवा हम्दो सना नहीं कोई कर्दा।
मन में जो भी तुम को भाए
करलो तुमतो जी भर राम
मेरा मन तो हरदम पाए
केवल तुम में ही विश्राम ।
दमसाज़= हमरंग। दरपर्दा = पर्दे में।
ग़म ए फ़र्दा = कल का डर। आमिल= doer.
हम्दो सना= prayer. कर्दा = किया हुआ।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।