Saturday, May 28, 2022
आबशार
Wednesday, May 25, 2022
शासकीय दोहे
Sunday, May 22, 2022
दोहे विज्ञानी
देखि दिनन कौ फेर रे, मति घबरावे तू
कहिके कान्हा सूँ व्यथा, बन बेफिकरा तू ।
दुनियाँ जाने है रची , वा ही वा को पीर
अपनो तो बस काम यो, जी भर खाओ खीर ।
होवे तो वाई सदा, जो चाहें रघुवीर
अपने तो बस में यही, चिंता भजें कि धीर।
सूरज उगताँ ही करो, दर्शन राजी होइ
दिन बीते सुख सूँ घँड़ो, व्यथा न होवे कोइ।
दिन में जब अवसर मिले, देखि लेउ आकाश
श्रद्धा सूँ करिलो नमन, कटि हें सिगरे पाश।
धरती कूँ करिके नमन, तब ही धरिओ पैर
वा ही माता आपणी, वा ही राखे खैर।
जिसको कहते शून्य सब, उसमें ही सब सार
सब कुछ उपजा शून्य से , ये ही सच्चा सार।
जानन कूँ इस जगत में, मात्र शून्य विज्ञान
शून्य बनन के वास्ते , धरो शाम्भवी ध्यान ।
चलते, फिरते, उठते, गिरते, दुश्कर नहीं यह काम
शम्भु जी की यह क्रिया , साधे सिगरे काम।
पँच तत्व को नमन करि, अपने ह्रदय सजाय
प्राप्य हेतु निवृत्ति को , सबसे सरल उपाय ।
चैस्ट ब्रीदिंग छोड़ के , बैली ब्रीदिंग कर
पूरी उम्र पाने को , ब्रीदिंग रेट कम कर ।
ॐ ॐ ॐ
पीर = master guide . धीर = धैर्य , धैर्यवान ।
बैली ब्रीदिंग = diaphragmatic breathing.
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
Thursday, May 19, 2022
दोहों में फैशन
फैशन के बाजार में , फैशन के परिधान
फैशन सिर पै चढ़ि रही, नहि फैशन सो ज्ञान ।
फैशन को समझे नहीं, वा सो मूरख कौन
सब कोई गिट पिट करे, वा ठाड़ो है मौन ।
पीज़ा बरगर कोला , ब्रेड बटर सब जानें
फैशन के मारे परि , छाछ नहीं पहिचानें।
अल्थी पल्थी मार के, जीवण करो न जाइ
फैशन के काँटे बिना, मुख में ग्रास न जाइ ।
पैर छुअत में कऊॅ, रीढ़ न टूट ई जाइ
फैशन की बारात में, सब करें हाइ हाइ ।
नेता या फिर अभिनेता, फैशन सबको भाइ
कोट, पेंट, टाई, बिना , छात्र क्योंकर जाइ ?
फैशन के बाजार में, ढूँढत अपनी जात
फटी पेंट, टैटू बिना , बने न कोई बात।
जब तक फैशन ना करो, कोई पूछत नाँहि
सब सोचत या अनपढ़ो , जाकूँ देउ भगाहि ।
फैशन में फैशन रहे, फैशन कहूँ न जाइ
कोई जो चाहे कहो , फैशन खूब सुहाइ।
जैसे पूड़ी नहि बने, बिन गेहूँ के चून
तैसे फैशन के बिना, सब लागे है सून।
हाइ= Hi!
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि ।
Monday, May 16, 2022
Buddha Poornima
Today is Buddha Poornima, the full moon day
It’s said Buddha got enlightenment on this day.
He is held the tenth embodiment of the Divine
The only one who isn’t mythological, so to say.
Enlightenment, well, is recklessly tossed about
It’s everywhere, from coffee table to self doubt.
It is not entanglement or its copy or its travesty
Nonchalantly, it’s a distant cry for any gadabout.
It’s beyond the realm of the physical and mental
It is also beyond what revs the duo, their mantle.
Enlightenment is an alignment with the creation
In which the seeker & creation are complemental.
The job of the moon is that of a catalytic mentor
The moon factors in, whatever may be the factor.
Full moon fast forwards on full throttle, & hence
Whoever needs last ditch effort, is the benefactor!
Buddha had worked on himself for six years, and
He was immediately in need of the last push, and
It happened, in totality. Everybody stood blessed:
Moon, river, pipal, virgin, kheer!What a Godsend!
Om Shantih
Ajit Sambodhi.
Friday, May 13, 2022
किधर गई ?
अभी हवा जो आई थी, वो किधर गई
एक महक सी आई थी, वो किधर गई ?
यहाँ पर एक बस्ती सी हुआ करती थी
आँखों को धोखा हुआ क्या, किधर गई ?
आईने में देखा था एक अक्स हसीन सा
वो तस्वीर जो नक़्श हुई थी, किधर गई ?
पाया भी, खोया भी, फ़िर क्या हुआ था
कुछ यादें तसव्वुर में थीं, वो किधर गईं?
लिखा, याद है, बहुत लिखा, पै एक दिन
लिखा मिटा दिया, शगुफ़्तगी किधर गई ?
कुछ दिल में कुछ आँखों में रखा करते हें
वो सलीका रखने की बसीरत किधर गई ?
दरीचे में क़दम से चिलमन खिसकती थी
आहट पहचानने की वो ज़र्फ, किधर गई ?
रहबर बिन कैसे बढ़े राह, जब से फँस गई
क़िस्मत के पासे में, राह न जाने किधर गई ?
सब कुछ सीखा था पट्टी पर, अब दिखता
नहीं गेरू कहीं , खड़िया जाने किधर गई ?
जो सुना करता था रबाबो बरबत की धुनें
पैहम अब वो सज्जादे समाअत किधर गई ?
खनकती आवाज़ में तैरती सरेशाम की वो
सुरमई शरमाहट ओ मुस्कुराहट किधर गई ?
कभी क़ाबिल थे हम, पै अब क़ाबिल न रहे
सब्र करने की हमारी दरख़्वास्त किधर गई ?
रौशन थी ज़िंदगी और, मुझको ख़बर न थी
अँधेरों से क्या पूँछूँ, मेरी परछाईं किधर गई ?
लड़ते थे बिना अस्लहा, वो सादगी चली गई
किससे पूँछूँ जाकर , मेरी इबादत किधर गई ?
बहुत देर लगी समझने में क्या खो दिया मेंने
वो जो आजाती थी देखके रौनक़ किधर गई ?
अभी चूँ चूँ करती चिकेडी आई थी मेरे पास
मेंने पूँछा, क्या हुआ, बसँती निदा किधर गई ?
कहने लगी, मैं बच गई, समझो ये ग़नीमत है
मई का महीना है, गर्मी लेगई, और किधर गई ?
अक्स = image. नक़्श = imprint. तसव्वुर=कल्पना।
शगुफ़्तगी = आह्लाद । बसीरत = insight. ज़र्फ़ = skill.
रबाबो बरबत = lyres. पैहम = लगातार ।निदा = call.
चिकेडी=chickadee.Its spring call is chickadee dee dee.
सज्जादे समाअत = सुनने की/का उपासक ।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि ।
Tuesday, May 10, 2022
बंजर का मंज़र।
वो शोर से शोर को मिटाया करते हें
दीवारें उठा के, प्यार बढ़ाया करते हें
मेरी समझ में नहीं आ रही है ये बात
वो बन्दूक से बात समझाया करते हें ।
प्यार मर गया तो नफ़रतें रह जाँऐंगी
इन्सान न रहेगा , सरहदें रह जाँऐंगी
बारूद के ढेर पर बैठ के हम लड़ रहे
कुछ न बचेगा वीरानियाँ बच जाँऐंगी।
वो लड़ाई को लड़ के मारना चाहते हें
वो बैरी को बैरी बनके मारना चाहते हें
मालिक ने सब कुछ बख़्शा है मुफ़्त में
वो उसको हटा के अपना नाम चाहते हें ।
हम तरक़्क़ी पसन्द हें, वे बताया करते हें
हम एक धरती, हज़ार देश हुआ करते हें
पहले एक गाँव एक घर, हुआ करता था
अब एक गाँव एक सौ घर हुआ करते हें ।
कभी एक घर में इतने लोग हुआ करते थे
बातों के सिलसिले ख़त्म, न हुआ करते थे
अब बुज़ुर्ग व्रद्धाश्रम में, बच्चे बाहर जाते हें
पा सकेंगे वो दिन, जो पहिले हुआ करते थे ?
अब तो प्यार जैसे चिल्लर में मिला करता है
कुछ अभी कुछ फ़िर, पुर्ज़ों में मिला करता है
बहुत चाहते हें, कभी कोई सिल्ली मिल ज़ाइ
आख़िर उम्मीद पे ही हर ख़्वाब टिका करता है ।
बंजर ज़मीन है, इसको बारिश की ज़रूरत है
सोच में खोट है, इसे सूझ बूझ की ज़रूरत है
इन सूखे सूखे चेहरों पे, मुस्कान आने दीजिए
मुस्कान लाने के लिए, मुहब्बत की ज़रूरत है ।
मुहब्बत माँगी नहीं जाती , बस बाँटी जाती है
किश्तों में नहीं दिया करते, ये उँडेली जाती है
सूरज चाँद तारे, और न जाने क्या क्या है वहाँ
सारे रिश्तों में बस , मुहब्बत ही आती जाती है ।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि ।
Saturday, May 7, 2022
चाचा की चौपाल !
ये यहाँ की चाचा की चौपाल है
यहाँ मिलते हर रँग के कव्वाल हें
मिलता सब को, सब का हाल है
यहाँ रहता क़िस्सों का धमाल है ।
I
मिट्टी के चूल्हे में हो लकड़ी की आग
धीमे से खदकता हो सरसों का साग
सिल बट्टे पे पिसी हरी मिर्ची के साथ
कुरकुरी मक्की रोटी, लगती है स्वाद ।
ये तो वहीं पड़े रहेंगे, जहाँ पे पुरखे थे
ज़माना आगे गया, वहाँ से जहाँ वे थे
अब तो माइक्रो वेव पकाता है झट से
हड्डी गला दे, इतने ग़र्म कभी अँगारे थे ?
II
मकान की छत पे , रहता है मेरा मचान
रात में सोता मैं, तान के पूरा आसमान
मत समझ लेना, मैं सोता हूँ अकेले वहाँ
तारे भी आ जाते हें, ले के अपना सामान !
सूरज उगने से पहिले, बुलबुल बोलती है
बड़ी समझदारी से, इस्तक़बाल करती है
आख़िर सूरज से ही तो , दुनियाँ चलती है
मुझको जगाने का भी वही काम करती है ।
वो होशियार लोग हें, फ्रिज में से खाते हें
आधी रात को भी उठ कर, पीज़ा खाते हें
सुबह उठते ही पहिले, सब बरगर खाते हें
बड़े ठाठ हें उनके दिन में मैकरोनी खाते हें ।
सब के सब गद्दे जैसे गुदगुदे हो रहे हें
सूरज सर पे चढ़ गया, अभी सो रहे हें
दुगने मोटे गद्दों पे, ए.सी. में सो रहे हें
पता नहीं पड़ोसी क्यों परेशाँ हो रहे हें ?
ॐ ॐ ॐ
बाई कह रही थी , किसी को बताना नहीं
हर महीने बिल आता है, बात बताना नहीं
डाक्टर का, मेरी साल की पगार जितना
कमाते किसके लिए हें? बात बताना नहीं ।
III
“मारो मारो”, झण्डे पर यही निशान था
ताक़त दिखाने का , एक यही पैमाना था
बचाने का ज़िक्र तो कहीं पे, कभी न था
बचाना कभी भी, कोई मुद्दा रहा ही न था ।
हर ओर एक नारा है, दुश्मन को मारना है
अपनी फ़ौज के लिए असलहा बनाना है
बड़ी मुश्क़िल, हर तरफ़ दुश्मन ही दुश्मन
दोस्त तो है ही नहीं , फ़िर किसे बचाना है ?
गाँव की ज़मीन को तो फ़ैक्टरी निगल गई
ताज़ी हवा को फ़ैक्टरी की गैस निगल गई
मोर की आवाज़ फ़ैक्टरी की सीटी खा गई
इतना विकास ! मेरी तो हवा ही निकल गई !
इस्तक़बाल = स्वागत । असलहा = armament.
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि ।
Wednesday, May 4, 2022
ज़िंदगी
वाह, क्या ख़ूब दिलफ़रेब ज़िन्दगी है
इम्तिहानों की कैसी, नुमाइश लगी है ।
यहाँ तो हर तरफ़ बस आईने ही लगे हें
लोग हें, इश्के मजाज़ी देखने में लगे हें ।
इश्क़े हक़ीक़ी के वास्ते एक उम्र चाहिए
इबादत करने के लिए भी समझ चाहिए ।
रुलास आए तो समझना इश्क़ हो गया
जिसे ख़ुद से ज़्यादा चाहा वो रुला गया ।
यही चाह है मेरे हिस्से की धूप पाता रहूँ
और अपनी कश्ती का नाख़ुदा बना रहूँ ।
हालात बदल जाने से पैमाने बदल जाते हें
ये कैसी मनमानी है, इन्सान बदल जाते हें ।
ज़िन्दगी में सादगी ही बस एक ख़ज़ाना है
बाक़ी कुछ भी कर लो, सब एक बहाना है ।
ज़िन्दगी में रहती तब तक ही ख़ासियत है
जब तक चेहरे पे रहा करती, मासूमियत है ।
हर तरफ़ यहाँ बिखरा हुआ पड़ा जलाल है
जमाल का अब भी क्या किसी को मलाल है ?
सारी उम्र का असासा, मेरी यही इबादत है
मुझसे मिलने की यही तज्वीज़ ए अयादत है ।
जब भी मन करे, इबादत कर लिया कीजिए
इबादत ऐसी बरबत, कभी भी बजा लीजिए ।
इश्क़े मजाज़ी = दुनियावी मुहब्बत ।
इश्क़े हक़ीक़ी = रब के लिए मुहब्बत।
नाख़ुदा = नाविक । जलाल = भव्य प्रकाश। जमाल = हुस्न।
तज्वीज़ ए अयादत = बीमारी के बहाने से मिलना ।
बरबत = lyre. असासा = सामान ।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।
Sunday, May 1, 2022
सबीर हका के नाम
आज मज़दूर दिवस है
एकसौ बत्तीसवाँ बरस है ।
कौन होते हें ये मज़दूर
वे ही जो होते है मज़बूर ?
सभी को देते जो मकान
ख़ुद के होते नहीं मकान ?
मज़दूरनी के गर्भ में आते हें
तब से मज़दूर बन जाते हें ।
ये सबीर हका कह रहा है
एक मज़दूर कह रहा है ।
बिना खिड़की का कमरा
किराए पर मिला कमरा।
आसमान को कहता मैं घर
इस को कैसे कहूँ मैं घर ?
छह लोग रहते हें इसमें
अहले बैत रहते हें इसमें।
मौत से भी डर लगता अब तो
उस जहाँ में भी मज़दूर बना तो ?
पुलिस मुझे तलाश कर रही है
क्या सरकार नज़्मों से डर रही है ?
सब किताबें क़ब्र में ले जाऊँगा
अपने साथ इन्हें दफ़्न कर दूँगा ।
ॐ ॐ ॐ
सबीर, सुनो तुम साबिर हो
हका, तुम हक़ के शाकिर हो ।
तुमने तो एक ख़्वाब देखा था
तुमको तो एक घर देखना था ।
ऊँची इमारत चढ़ के देखना था
दिल को सजाए, उसे देखना था ।
तुमने कहा है ख़ुदा भी मज़दूर है
हाँ, उसका मकान बड़ा ज़रूर है ।
मज़दूर होना कोई गुनाह नहीं है
मज़दूर कोई भी बेपनाह नहीं है ।
आसमान को तुमने माना है घर
ज़मीन पर भी मिल जाएगा घर ।
जिसको तलाश कर रहे हो बराबर
दिल में आ बैठे, मिलेगा वो दिलबर।
हमारी दुआयें तुम्हारे साथ हें
मालिक का करम तुम्हारे साथ है ।
ॐ ॐ ॐ
अहले बैत = घर के लोग ।साबिर = धैर्यवान । हक़ = रब ।
शाकिर = क्रतज्ञ । दिलबर= प्रेमी । करम = क्रपा ।
ओम् शान्ति:
अजित सम्बोधि।